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त्यां ने दान दीयों छे मिथ्याती थके रे, मिथ्याती थकां कीयों परत संसार रे । इण करणी री जिणजी री छें आगना रे, तिण करणी में अवगुण नहीं लिगार रे ॥१४॥
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सांप्रत
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कह्यो रे,
संसार रे ।
सूतर महे दर्शन थी कीयों परत देव आउखों बांधयों दान थी रे, भगोती रा पनरमा सतक मफार रे ॥ १८॥ - भिक्षु ग्रंथ रत्नाकर खंड १ पृ०२६० अर्थात् विजय गाथापति, आनंद गाथापति, सुनंद गाथापति तथा बहुल ब्राह्मण ने भगवान् महावीर को शुद्ध दान दिया । उस समय वे सम्यक्त्वी नहीं थे—मिथ्यावी थे क्योंकि दान के प्रभाव से संसार परिमित किया देव का आयुष्य बांधा । इस निरवद्य करणी में भगवान् की आज्ञा है उसमें किंचित भी अवगुण नहीं है ।
(३) रेवती गाथापति ने साधु को आहार (बिजोरा पाक ) दिया । संसार परिमित कर देव का आयुष्य बांधा । ' कहा है
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"तएण तीए रेवतीए गाह्रावतिणीए तेणं दव्वसुद्वेणं जाव दाणेणं सीहे अणगारे पडिलाभिए समाणे देवाउए णिबद्ध, संसारे परितीकए × × × ।
- भगवती १५ स १५६.
(१) रेवती हरायो बिजोरा पाकनें रे, तिणदांन सू कीयों परत संसार रे । बले देव आखो बांध्यों दोन थी रे, ते विजय ज्यूं जांण
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लेजो विस्तार रे ॥२१॥
- भिक्षु ग्रंथ रत्नाकर खंड १,
मिथ्यातीरी निर्णय री हाल २ पृष्ठ २६०
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