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________________ [ २६० ] त्यां ने दान दीयों छे मिथ्याती थके रे, मिथ्याती थकां कीयों परत संसार रे । इण करणी री जिणजी री छें आगना रे, तिण करणी में अवगुण नहीं लिगार रे ॥१४॥ X X X सांप्रत इम कह्यो रे, संसार रे । सूतर महे दर्शन थी कीयों परत देव आउखों बांधयों दान थी रे, भगोती रा पनरमा सतक मफार रे ॥ १८॥ - भिक्षु ग्रंथ रत्नाकर खंड १ पृ०२६० अर्थात् विजय गाथापति, आनंद गाथापति, सुनंद गाथापति तथा बहुल ब्राह्मण ने भगवान् महावीर को शुद्ध दान दिया । उस समय वे सम्यक्त्वी नहीं थे—मिथ्यावी थे क्योंकि दान के प्रभाव से संसार परिमित किया देव का आयुष्य बांधा । इस निरवद्य करणी में भगवान् की आज्ञा है उसमें किंचित भी अवगुण नहीं है । (३) रेवती गाथापति ने साधु को आहार (बिजोरा पाक ) दिया । संसार परिमित कर देव का आयुष्य बांधा । ' कहा है - "तएण तीए रेवतीए गाह्रावतिणीए तेणं दव्वसुद्वेणं जाव दाणेणं सीहे अणगारे पडिलाभिए समाणे देवाउए णिबद्ध, संसारे परितीकए × × × । - भगवती १५ स १५६. (१) रेवती हरायो बिजोरा पाकनें रे, तिणदांन सू कीयों परत संसार रे । बले देव आखो बांध्यों दोन थी रे, ते विजय ज्यूं जांण Jain Education International 2010_03 लेजो विस्तार रे ॥२१॥ - भिक्षु ग्रंथ रत्नाकर खंड १, मिथ्यातीरी निर्णय री हाल २ पृष्ठ २६० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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