SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २६१ ] अर्थात् रेवती गाथापत्नी ने सिंह अणगार को (भगवान की औषधि के लिए) द्रव्य शुद्धि युक्त प्रशस्त भावों से दिये गये दान से प्रतिलाभित करने से देव का आयुष्य बांधा तथा संसार परिमित किया । - (४) पूरण तापस ने प्रथम गुणस्थान में १२ वर्ष तक बेले-बेले की तपस्या की। फलस्वरूप बहुत बड़ी निर्जरा हुई तथा उसने प्रथम गुणस्थान में निरषद्यानुष्ठान से भवनपति देव (चमरेन्द्र ) के आयुष्य बंधन किया, अंत में सम्यक्त्व को प्राप्तकर भवनपति देव रूप में उत्पन्न हुआ। (५) ताम्रलिप्ति नगरी में तामली नामक मौर्यपुत्र गृहपति रहता था। एक दिन उसने अपने बड़े पुत्र को गृहभार संभलाकर प्रणामा नामक प्रवर्धा अंगीकार की। जिसको जहाँ देखता है वहीं प्रणाम करता है। उच्च व्यक्ति को देखकर उच्च रीति से प्रणाम करता है और नीचे को देखकर नीची रीति से प्रणाम करता है अतः इसे प्रणामा प्रव्रा कहते हैं । उसने साठ हजार वर्ष तक बेले-बेले को तपस्या की। फलस्वरूप बालाप द्वारा तामली तापस का शरीर शुष्क पड़ गया। तएणं से तामली बालतवस्सी बहुपडिपुण्णाइ सर्हि वाससहस्साई परियागं पाउणित्ता, दोमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सवीसं भत्तसयं अणसणाए छेदित्ता कालमासे कालं किच्चा ईसाणे कप्पे xxx ईसाणदेविदत्ताए उववण्णे। --भग ३ । उ १ सू ४३ अर्थात् तामली बालतपस्वी पूरे साठ हजार वर्ष तक तापस पर्याय का पालन करके, दो महिने की संलेखना आत्मा को संयुक्त कर के एक सौ बोस भक्त अनसन का छेदन करके और काल के अवसर पर काल करके ईशान देवलोक में ईशानेन्द्र रूप से उत्पन्न हुआ। (६)-पूर्व समय में वल्कलचीरो और तारागण ऋषि आदि शुद्ध क्रिया के द्वारा मिथ्यात्वी से सम्यक्त्वी होकर सद्गति को प्राप्त किया। जैसे कि सूयगडांग सूत्र के टीकाकार भाचार्य शीलोक ने कहा है। केचन अविदितपरमार्था आहु, उक्तवंतः, किं तदित्याह-यथा 'महापुरुषाः प्रधान पुरुषाः बल्कलचीरितारागणर्षि प्रभृतयः 'पूर्व' १-भगवती २०३। १. Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy