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[ २४६ ] मिष्यात्वी को मोक्ष मार्ग का देश बाराषक कहा है। श्री मज्जयाचार्य ने ३.६ बोलकी हुँडी में ( चतुर्थ ढाल में ) कहा है
"ए पिण निर्जरा आश्री जाण ज्यो रे, तिण रे निश्चेइ श्री जिन आज्ञा जाण रे । इण करणी ने जिन आज्ञा बारें कहें रे, ते तो पूरा छ मूढ अयाण रे॥"
-३०६ बोल की हुण्डी अर्थात् मिध्यावो निर्जरा धर्म का अधिकारी माना गया है । उसकी निर्जरा रूप करणी की भगवान की आज्ञा है। यदि उसकी इस करणी को कोई जिनामा के बाहर कहता है वह पूरा दिग्मूढ है। प्रश्नोत्तर तत्व बोधमें कहा है
"धर्म बिना पुण्य नाही रे, शुभ जोगांथी निरजरा पुण्यबंध पिण थायरे, ज्यू गेहूँ लार खाखलो।" १५५
-अनुकम्पाधिकार अस्तु निर्जरा - तप दो धर्मों में से एक धर्म है। बिना पुण्य के बंध हुए जीव उच्चगति को प्राप्त नहीं होते हैं। यहां तक कि अभव्य जीव (जिनके सकाम निर्जरा नहीं होती है ) जीव भी बिना शुद्धि क्रिया के उच्चगति को प्राप्त नहीं होते हैं ! अतः शुद्धक्रिया कोई भी करने वाले को आत्मा अंशतः अवश्य ही उज्ज्वलता को प्राप्त होगी ही। बिना आत्मा के उज्ज्वल हुए कोई भी जीव (आत्मा का उत्थान ) ऊँचा नहीं उठता है। शुभ कर्म करने वाले जीव सद्गति को प्राप्त करते हैं तथा अशुभ कर्म करने वाले जोव दुर्गति को प्राप्त करते हैं।' साता वेदनीय आदि शुभ कर्मों को पुण्य कहा जाता है २, किन्तु उपचार से विस निमित्त से पुण्य का बंध होता है, वह भी पुण्य कहा जाता है, जैसे संयमी साधु को अन्न देने से जो शुभ कर्म का बंथ होता है उसे अन्न पुण्य कहा जाता है, आदि । ज्ञानावरणीयादि अशुभ कर्मो को पाप कहा जाता है।
(१) शुभ कर्म पुण्यम् ॥३॥ - जैन सिद्धांत दीपिका प्र० ४ (२) अशुभं कम पापम् ।।१५।। -जैन सिद्धांत दोपिका प्र ४
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