________________
[ १५६ ] तए णं तस्स सुदंसणस्स सेट्ठिस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमठे सोच्चा णिसम्म सुभेणं अज्मवसाणेणं सुभेणं परिणामेणं लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहा-पोह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स सगीपुधे जाईसरणे समुप्पन्ने ।
-भगवती श ११। उ ११ सू १७१ अर्थात् श्रमण भगवान महावीर स्वामी से धर्म सुनकर और हृदय में धारण कर सुदर्शन सेठ को शुभ अध्यवसाय, शुभपरिणाम और विशुद्धलेल्या से तदावरणीय कर्म का क्षयोपशम हुआ गौर ईहा, पोह, माया और गवेषणा करते हुए संज्ञीपूर्व'-जातिस्मरण ( ऐसा ज्ञान जिससे निरंतर-संलग्न अपने संज्ञो रूप से किये हुए पूर्व भव देखे जा सके ) ज्ञान उत्पन्न हुआ। ___ -आणंद श्रावक को पौषधशाला में विशेष रूप से धर्म की आराधना करते हुए अवधिज्ञान सम्भक्त्व अवस्था में उत्पन्न हुआ। __ आणंदस्स समणोवासगस्स अन्नया कयाइ सुभेणं अज्मवसाणेण सुभेणं परिणामेणं लेस्साहिं विसुममाणीहिं तयावरणिज्जाणं खओवसमेणं ओहिनाणे समुप्पन्ने ।
__ उपासकदशांग अ १ सू । ६६ (धर्मजागरणा करते हुए ) आणंद श्रावक को किसी समय में शुभ अध्यवसाय, शुभपरिणाम और विशुद्धलेश्या से पदावरणीय कर्म ( अवधिज्ञानावरणीय कर्म ) के क्षयोपशम होने से अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ।
१०-भरतचक्रवृत्ति को आरिसा भवन में अनित्य भावना को भावित करते हुए केवलज्ञान, केवलदर्शन उत्पन्न हुआ-(सम्यक्स्व तथा चारित्र अवस्था में)।
सए णं तस्स भरहस्स रगो सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहिं अमव माणेहिं लेखाहिं विसुज्झमाणीहिं २ ईहापोहमगणगवेसणं करेमाणस्स तयावरणिज्जाणं कम्माणं खएणं कम्मरयविकिरणकर अपुवकरण
(१) समवायांग सूत्र में जातिक्ष्मरण ज्ञान को संज्ञीज्ञान कहा है।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International 2010_03
www.jainelibrary.org