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[ ६७ ] अर्थात् पुण्य-आस्रव के निम्नलिखित कारण है-सरागसंयम, देशसंयम, अकाम निर्जरा, बालतप, शुभ-प्रवृत्ति। ये शुभयोग आश्रव के कारण है। मिथ्यादृष्टियों की तपस्या को बालाप में सम्मिलित किया है । अकाम निर्जरामिथ्यात्वी और सम्यक्त्वो-दोनों के होती है। षट्खण्डागम के टीकाकार आचार्य वीरसेन ने कहा है
मिच्छाइटिप्पहुडि xxx बंधा चेव । तत्थ बंधकारण मिच्छत्तादोणमुवलंभादो।
-षट० खं० २, १, सूह। पु पृ० १६ अर्थात् मिथ्यादृष्टि के मिथ्यात्व आदि आश्रव बंध के कारण है। जिस मिथ्यात्वी के तीव्र मोहनीय कर्म का उदय होता है वह मिथ्यात्वी राग और द्वेष के वशीभूत होकर महाघोर कर्म का बंध कर लेता है। सूयगडांग में कहा है
रागदोसामिभूयप्पा, मिच्छत्तण अभिद्दुया। अक्कोसे सरणं जंति, टंकणा इव पब्वयं ॥
-सूय० श्रु ११ अ ३ । उ ३। गा ५७ अर्थात राग और द्वष से जिनका हृदय दबा हुआ है तथा जो मिथ्यात्व से भरे हुए है वे जब शास्त्रार्थ में परास्त हो जाते हैं तब गाली-गलौज और मारपीट का आश्रय लेते हैं। जैसे पहाड़ पर रहने वाली कोई म्लेच्छ वाति युद्ध में हारकर पहास का शरण लेती है । समवायांग सूत्र में कहा है
पंच आसवदारा पण्णत्ता, तंजहा-मिच्छत्त, अविरई, पमाया, कसाया, जोगा।
-सम० सम ५, सू ४ टीका-आश्रवद्वाराणि-कर्मोपादानोपाया मिथ्यात्वादीनि ।
अर्थात् कर्मो के आगमन के पांच द्वार हैं, यथा-मिथ्यात्व, अव्रत प्रमाद, कषाय और योग । इन पांच आस्रव द्वारों में से प्रथम चार आस्रव (मिथ्यात्व, अवत, प्रमाद, कषाय) एकान्ततः पाप बंधन के कारण है तथा योग आस्रव के दो भेद है-शुभयोग आस्रव तथा अशुभयोग आश्रय । इनमें से शुभयोग बाश्रषपुष्य बंध का कारण है तथा अशुभयोग आस्रव पाप पंधका कारण है।
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