________________
| १३६ ] कतिपय मिथ्यात्वी सक्रिया से बोधि को सुलभता से प्राप्त कर लेते हैं तथा कतिपय मिथ्यात्व-तोत्र मोह में इतने ज्यादा ग्रसित है कि उन्हें भवान्तर में भी बोषि की प्राप्ति होनो दुर्लभ है। कितने मिथ्यात्वी यथाप्रवृत्तिकरण में प्रवेश करके भी आत्मबोधि से वंचित रह जाते हैं। इससे इसकी दुर्लभता जानी जा सकती है। बोधि को प्राप्त करने का मनुष्य जन्म ही एक उपयुक्त अवसर है। अनेक जन्म के बाद महान पुण्य के योग से मनुष्य का जन्म मिलता है । धर्म को प्राति में और भी अनेक विघ्न हैं।
अतः मिथ्यात्वी सद क्रिया में प्रमाद न करे, तप से विशेष कर्म निर्जरा. दृष्टि को सम्यग बनाने की चेष्टाकरे फलतः बोधिकी प्राप्ति सुलम होगी। श्री चिदानंदजी ने कहा है'बार अनंती चूक्यो चेतन !, इण अवसर मत चूक'
उपरोक्त भावना का मिथ्यात्वी अवलंबन लेकर बोधि प्राप्त करने का अभ्यास करे। ___अस्तु जिन मिथ्यात्वो को जिन धर्म की प्राप्ति सुलभ हों उन्हें सुलभ बोधि कहते हैं तथा जिन मिथ्यात्वी को जिनधर्म दुष्प्राप्य हो उन्हें दुर्लभबोधि कहते हैं।' ठाणांग सूत्र में कहा है
पंचहिं ठाणेहिं जीवा दुल्लभबोधियत्ताए कम्म परेंति, संजहाअरहताणं अवन्नं वदमाणे, अरहतपन्नत्तस्स धम्मस्स अन्नं वदमाणे, आयरियउवमायाणं अवन्नं वदमाणे, चाउवन्नस्स संघस्स अवन्नं चदमाणे, विवक्तवबंमचेराणं देवाण अवन्नं वदमाणे।
-ठाणांग स्था ।सू १३३ अर्थात् जीव पांच कारणों से दुर्लभ बोधि योग्य मोहनीय कर्म का बंधन करता है, यथा
१-अरिहंत भगवंत का अवर्णवाद बोलने से।
१-बोधि :-जिनधर्मः ( प्राप्तिः ) सा सुलभा येषां ते सुलभ. बोधिकाः, एवमितरेऽपि ।
-ठाणांग २।२।१६० टीका
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org