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[ १२८ ] सव्वाओ लद्धीओ जं सागारोपओगलाभाओ।
-प्रज्ञापना पद ३६। स २१७५ टीका अर्थात् साकोरोपयोगी को ही सर्व लब्धि की प्राप्ति होती है। मिथ्यात्वी शुभ लेश्या में काल कर सद्गति में उत्पन्न होता है । कहा है - तओ दुग्गइगामियाओ, तओ सुगइगामिओ।
-लेश्याकोश पृ० २७ अर्थात प्रथम तीन लेश्या दुर्गति में ले जाने वाली है तथा पश्चात की तीन लेल्या सुगति में ले जाने वाली है। मिथ्यादृष्टि के छओं लेश्याओं के प्रत्येक के असंख्यात स्थान होते हैं परन्तु उनकी पर्याय अनन्त होती हैं। मरण को प्राप्ति के समय मिथ्यात्वी के कतिपय लब्धियाँ का अस्तित्व होता है। ___ वेश्यायन बालसपस्वी को तपस्यादि से तेजोलब्धि ( तेजो लेश्या ) प्राप्त हुई थी। उसने उसका गोशालक पर प्रयोग भी किया था। कहा है___तए णं अहं गोयमा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अणकंपणट्टयाए वेसियायणस्स बालतवस्सिस्स उसिण तेय पडिसाहरणट्ठयाए एत्थ णं अंतरा अह सीयलियं तेयलेस्सं निसिरामि, जाए सा ममं सीयलियाए तेयलेस्साए वेसियायणस्स वालतवस्सिस्स उसिणा तेयलेस्सा पडिहया।
-भगवती श १५ सू ६५ अर्थात् वेश्यायन बालतपस्त्रो ने मंलिपुत्र गोशालक पर तेजो लेश्या छोड़ी किन्तु छद्मस्थ भगवान महावीर ने मंखलिपुत्र गोशालक पर अनुकम्पा लाकर उसे उष्ण तेजो लेश्या का प्रतिसंहार करने के लिए शीततेजोलेश्या बाहर निकालो यो। ___अस्तु लब्धि का फोड़ना सावध कार्य है किन्तु लब्धि की प्राप्ति मिथ्यात्वी को भी सक्रिया विशेष से होती है।
३: मिथ्यात्वी और भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक मिथ्यात्यो भवसिद्धिक तथा अभवसिद्धिक दोनों प्रकार के होते हैं । जो अभवसिद्धिक मिथ्यात्वी हैं उनमें मोक्षप्राप्ति की योग्यता नहीं होती हैं, तथा वे
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