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[ १०१ ] सम्यक्त्वदेशविरतिसर्वविरतीनां प्रतिपत्तिकाले शुभलेश्यात्रयमेव भवति । उत्तरकालं तु सर्वा अपि लेश्याः परावर्तन्तेऽपि इति । श्रीमदाराध्यपादा अप्पाहुः
सम्मत्तसुयं सव्वासु लहइ सुद्धासु तीसु य चरित पुवपडिवन्नओ पुण, अन्नरीए उ लेसाए ॥
-आ० नि० गा ८२२ अर्थात् सम्यक्त्वादि की प्राप्ति के समय तीन शुभ लेश्यायें होती है' श्रीमज्जयाचार्य ने कहा
“पहिले गुणठाणे अनेक सुलभ बोधी जीवां सुपात्र दान देइ, जीवदया, तपस्या, शीलादिक, भली उत्तम करणी, शुभ योग, शुभ लेश्या निरवद्य व्यापार थी परीत संसार कियो छै। ते करणी शुद्ध आज्ञा माहिली छ। ते करणी रे लेखे देशथकी मोक्षमार्गनो आराधक कह यो छ ।”
-भ्रमविध्वंसनम् पृ०२ कटपूतना नामक पाणव्यंतरी जो पूर्वजन्म में (मिथ्यात्वी अवस्था में ) बाल तप ( शुभ आचारण ) का आचरण किया था फलस्वरूप सुकृत के कारण कटपूतना वाणव्यंतरी हुई। कहा है
वाणमन्तरिका तत्र नामतः कटपूतना। त्रिपृष्ठजन्मनि विभोः पत्नी विजयवत्यभूत् ॥ . सम्यगप्रतिचरिता सामर्षा च सती मृता। भ्रान्त्वा भवान् सा मानुष्यं प्राप्य बालतपोऽकरोत् ।
–त्रिश्लाघा० पर्व १० सर्ग३ । श्लोक ६१५, १६ अर्थात् शालिशीर्ष नामक ग्राम में कटपूतना वाणध्यंतरी देवी रहती थी। भगवान महावीर के त्रिपृष्ट वासुदेव के भव में वह उनकी विजयवती नामक पत्नी थी । सभ्यग प्रकार से सम्मान न मिला फलस्वरूप रोष से वह मरी।।
१-कर्मग्रन्थ भाग ४
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