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'अविनाभावोऽत्र सम्बन्धमात्रम्' पर विवेचन
शुद्धा सारोपा और साध्यवसाना के उदाहरण तथा शङ्का-समाधान
'मेदाविमौ च' कारिका की वृत्ति की व्याख्य
'लक्षणा तेन षड्विधा' की 'प्रादिभेदाभ्याम्' इस वृत्तिग्रन्थ के साथ व्याख्या
पार्थसारथि मिश्र द्वारा स्वीकृत गोरगी वृत्ति के ६ भेदों का अन्य लक्षरणा - भेदों में अन्तर्भाव
'लक्षणा तेन षड्विधा' की विविध व्याख्या (चण्डीदास के अनुसार ) गौणी के उपादान और लक्षण लक्षरणारूप भेद नहीं
लक्षणा के निर्दिष्ट षड्विधात्व का स्वमतानुसार तथा तात्पर्य, निरूढा और प्रयोजनवती लक्षणा
के लक्षण
लक्षणा से व्यञ्जना की घोर गमन - 'प्रयोजनं हि व्यापारगम्यमेव' की व्याख्या
प्रयोजनवती लक्षरणा के १२ भेद तथा तच्च गूढमगूढं वा' की सवृत्ति (सोदाहरण) व्याख्या
'तदेषा कविता त्रिधा' की व्याख्या
लाक्षणिक शब्द किसे कहते हैं ? 'तभूर्लाक्षणिकः '
'तत्र व्यापारी व्यञ्जनात्मकः' लिखने का रहस्य
प्रयोजन की वाच्यता का निराकरण
'स्वाद' प्रयोजन के लिए व्यञ्जना की अनिवार्यता
'शैत्यादि' अनुमान - गम्य नहीं
अभिधा व्यापार व्यङ्ग्य को नहीं बता सकता
'हेत्वभावान्न लक्षणा' की व्याख्या
प्रयोजन की लक्ष्यता का निराकरण
हेतु की प्रसिद्धि दिखाने के लिए 'लक्ष्यं न मुख्य' (सूत्र २६) की व्याख्या
प्रदीपकार, सुबुद्धि मिश्र तथा अन्य मतों के अनुसार उपर्युक्त सूत्र की व्याख्या
प्रयोजन को लक्ष्य मानने पर मूलक्षयकारिणी अनवस्था रूप दोष
'प्रयोजनेन सहितं लक्षणीयं न प्रयुज्यते' की व्याख्या
'ज्ञानस्य विषयो' उदाहृतम्' पर सुबुद्धिमिश्र तथा मधुमतीकार आदि अन्य मत और अन्य शस्त्रार्थ 'विशिष्ट लक्षणा नैवम्' की व्याख्या तथा स्वमत
"विशेषाः स्युस्तु लक्षिते" की धवसङ्गति और कुछ
विभिन्न व्याख्याएँ
अभिधामूला व्यञ्जना संयोगादि के द्वारा किसका किस पर नियन्त्रण ?
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संयोग-विप्रयोग आदि की व्याख्या तथा उदाहरण
'इत्थं संयोगादिभि:' इत्यादि वृत्ति की व्याख्या
'भद्रात्मनो' इत्यादि पद्य में व्यग्य निर्धारण की प्रक्रिया तथा विविध शा-समाधान
व्यञ्जना से होनेवाले अत्राकरणिक अर्थ अभिषेय ही क्यों होते हैं ?
'तद्युक्तो व्यञ्जकः शब्दः ' की व्याख्या एवं स्वमत
'अर्वोऽपि व्यञ्जकस्तत्र, इत्यादि की व्याख्या
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