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सङ्केत-ग्रह-विचार, 'सङ्केतितश्चतुर्भेद': की अवसर-सङ्गति (जात्यादि में, केवल जाति में, अपोह में
और जातिविशिष्ट व्यक्ति में शक्तिग्रह माननेवालों के मत का निरूपण एवं अन्त में व्यक्तिवाद
की स्थापना) व्याकरण-सम्मत चतुर्विध सङ्केतित अर्थ का विश्लेषण 'उपाधिश्च द्विविधः' इत्यादि वृत्ति की व्याख्या 'उक्तं हि वाक्यपदीये' इत्यादि वृत्ति पर टीकाकार का मत वस्तुधर्म के दो भेद 'सिद्ध और साध्य' का विश्लेषण यहच्छात्मक उपाधि की व्याख्या एवं अन्य टीकाकारों के मत और उनकी अयुक्तता बताते हुए
टीकाकार का स्वमत यहच्छाशब्द के सम्बन्ध में प्राचीन आचार्यों का मत परम-अणु-परिमाण की गुणों में गणना का स्पष्टीकरण (टिप्पणी में) गुण शब्द आदि दोषों की शङ्का और उसका निवारण उपर्युक्त विवेचन पर टीकाकर का अभिमत मीमांसादर्शन सम्मत 'जाति' रूप एकविध सङ्केतित अर्थ का विश्लेषण एवं टीकाकार का अभिमत 'तद्वान् अपोहो वा' इत्यादि वैयायिक मत का स्पष्टीकरण नैयायिक तथा बौद्ध मत का स्पष्टीकरण (टिप्पणी में) सङ्कतित अर्थ ही मुख्यार्थ है - मुख्यार्थ शब्दार्थ का चौथा भेद नहीं अथवा अभिधा-निरूपण लक्षणा-निरूपण (लक्षणा का सामान्य लक्षण)
(यहाँ टीका का कुछ अंश खण्डित है जिसका हिन्दी अर्थ में समन्वय किया गया है।) टिप्पणी में-नागेश भट्ट द्वारा स्वीकृत लक्षणा का बीज 'तात्पर्यानुपपत्ति' लक्षणा के दो भेद १-उपादान-लक्षणा तथा २-लक्षण-लक्षणा उपादान-लक्षणा के दो उदाहरण और उनपर विस्तृत चर्चा 'गौरनुबन्ध्यः' में उपादान-लक्षणा माननेवाले मुकुलभट्ट तथा मण्डनमिश्रादि मीमांसकों के मत का
खण्डन, मधुमतीकार की व्याख्या, टीकाकार-सम्मत व्याख्या, सुबुद्धिमिश्र का मत एवं अन्य चर्चाएँ अर्थापत्ति लक्षणा नहीं लक्षण-लक्षणा का उदाहरण 'उभयरूपा चेयं शुद्धा' का विवेचन शुद्धा लक्षणा में शुद्धा पदार्थ क्या है ? (अन्यमत तथा स्वमत निरूपण) शुद्धा तथा गौणी-विषयक मुकुलभट्ट का मत टीकाकार का मत उपादान-लक्षणा और लक्षण-लक्षणा के शुद्धागत तत्त्व का विवेचन 'भेदाविमो च' कारिका की सपदकृत्य व्याख्या गौरणी को लक्षणा न मानकर वृत्त्यन्तर माननेवाले का मत और उसका खण्डन 'स्वार्थसहचारिगुणा भेदेन, इत्यादि की व्याख्या- स्वसम्मतपक्ष