________________ . (20) यति के पास संक्षिप्त वर्णन या कथावाली प्रति सनी हो और दूसरे वर्ष दसरे यति के पास विस्तृत वर्णन या कथावाली प्रति सुनने में आयी हो, तो श्रोताओं को सन्देह उत्पन्न होता है कि इसमें तो अमुक अधिकार आया नहीं है; इसलिए यह प्रति तो ठीक नहीं है। ऐसे अल्पबुद्धि वाले श्रोताओं के लिए एक ही प्रकार का लिखा हुआ कल्पसूत्र पढ़ा जाता हो, तो उन्हें किसी प्रकार का संशय उत्पन्न नहीं हो सकता। यदि कोई श्रावक या श्राविका उपाश्रय में सुनने के लिए आने में असमर्थ हो, तो वह अपने घर में पढ़ कर या किसी से पढ़ा कर, सुन कर लाभ ले सकता है। इसी प्रकार यदि कोई मनुष्य बहरा हो, तो वह दूसरों को सुन नहीं सकता; पर स्वयं को पढ़ना आता हो, तो वह भी कल्पसूत्र पढ़ कर पर्व की आराधना कर के लाभ ले सकता है। छोटे-छोटे गाँवों वाले जैन लोग, जिन्हें साधु या यति का योग नहीं मिल सकता हो, वे पढ़ कर लाभ ले सकते हैं। मालवा, मारवाड़ और मेवाड़ देश के कई गाँवों में स्त्रियों को परदे में रखने का रिवाज है। परदानशीन स्त्रियाँ व्याख्यान सुनने भी न जा सकें, ऐसा सख्त प्रतिबंध है। वे यदि पढ़ी-लिखी हों, तो पर्युषण जैसे पर्व के दिनों में कल्पसूत्र अपने घर में पढ़ सकती हैं। इसी प्रकार नवदीक्षित साध्वी बालावबोधमय कल्पसूत्र हो, तो पढ़ कर सुना सकती है या स्वयं पढ़ सकती है। इत्यादि अनेक कारणों को लक्ष्य में रख कर मालवा, मेवाड़, मारवाड़ और गुजरात के जैन संघों ने प्रार्थना की कि यद्यपि कल्पसूत्र के टब्बे और ज्ञानविमलसूरि आदि के किये हुए बालावबोध हैं; तथापि उनमें कई बाबतें न होने से या अधूरी रहने से ये हर किसी को समान रूप से लाभकारक होने जैसे नहीं हैं। क्योंकि अधूरा ज्ञान, ज्ञान नहीं, अधूरा पढ़ा पढ़ा-लिखा नही, अधूरी रसवती रसोई नहीं, अधूरा वृक्ष वृक्ष नहीं, अर्द्धपक्व फल स्वादिष्ट नहीं; इसलिए सम्पूर्ण चाहिये। अतः आप कल्पसूत्र का ऐसा बालावबोध तैयार करने की कृपा कीजिये कि जिससे सब लोग समान रूप से लाभ प्राप्त कर सकें। श्री संघ की प्रार्थना ध्यान में ले कर प्राचीन भंडारों में से पुरातन लिखित कल्पसूत्र की टीका, चूर्णी, नियुक्ति तथा टब्बा और भाषा की दस-बारह प्रतियाँ जमा कर के यह बालावबोध लिखना शुरु किया। गुरुदेव की असीम कृपा से विक्रम संवत् 1940 वैशाख वदि 2 मंगलवार के दिन यह निर्विघ्न पूर्ण हुआ। पूर्ण होते ही आहोर, जालोर, गुड़ाबालोतान, हरजी, शिवगंज, सियाणा, बागरा, भीनमाल, थराद, धानेरा, राजगढ़, राजपुर, कूकसी, रतलाम, जावरा, मंदसौर आदि गाँवों के संघों ने अपने-अपने लिए खास लिखने वालों को रोक कर एक या