Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1911 Book 07
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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જૈન કોન્ફરન્સ હેરલ્ડ.
महाशय
नइ प्रथाऐ आजकल प्रवृत्त हो रही है. जैसे 'विधवा विवाह' आदि शीघ्र ही इन 'प्रेमहिन' के दिलमें अपना स्थान जमा देगी, और ' कुसम्प' महात्मा अपना पक्का निवास भवन बनालेंगें, फिरतो इनकों तोपोसे भी हठाना मुश्किल हो जायगा. “ यदि आप संक्षेपसेही अपने शास्त्रानुसार प्रेम का गुण व महत्व समझ कर अपने कर्त्तव्य में प्रवृत हो जाय तो अभी बहोत कुछ सुधारा हो सक्ता है, और जब सच्चा प्रेम एक दूसरे के दिलमें जमा देगा तो सहजही में आप वह तरक्की करसकेंगें के आपकि ज्ञाति व धर्मका डंका दुनिया भर में विजय प्राप्त कर लेगा. क्योंकि अपने महर्षि पितामह श्री वीर प्रभुने व शुभेच्छक आचार्योंने अपने धर्म के ऐसे कायदे - Rules - संगठित किये हैं कि ऐरे गेरे उनके आगे मुंह हं बता सकते." अब कोई 'प्रेम' को एक दूसरे के दिमाग में जमानेका रास्ता पुछें तो में अपनी अल्प बुद्धि अनुसार एक सुगम मार्ग बतलाता हूँ. यानि कान्फरंस अथवा सभा सोसायटी के जल्सेमें जो सालाना लक्षों रुपये व्यय होते हैं वो एक साल तक जल्से बंध करके वह रुपये एक जगह एकत्रित करके दस हजार रुपये में एक प्रेस खरिद लिया जावे. और बाकि रुपेऐसे व्यापार में लगा दिया जावे कि जिसकी आमदनी फि सेंकडा दो रुपये महिना से कम न हो, आमदनीसे एक बडा भारी जैन - गज़त चलाया जावे, और वह पेपर बिनामूल्य ( केवल डाकव्यय लेकर ) प्रत्येक जैनके घर मे पहोंचाया जावे, और सालाना किसी तिर्थस्थल पर सिर्फ विद्वान महार्ष एकत्रित होकर प्रस्ताव पास करदें. वेही प्रस्ताव व उत्तेजना पूर्ण अच्छे २ विद्वानोंके असरकारक लेख उक्त पत्रमे प्रकाशित कराये जावें, इससे निःसन्देह अतुल्य लाभ प्राप्त होगा, क्योंकि जल्समें तो सिर्फ ३ दिनकि लेकर बाजी मेही लक्षों रुपये व्यय होजाते हैं. और फिर उस जसे में पास हुवे ठहराव प्रत्येक जैनीके पास नहिं पहोंच सक्ते, और इस कार्य के चलानेसे आपके समय समय के विचार हमेशा प्रत्येक जैनको मालुम होनेसे 'प्रेम' का सच्चा महत्व व गुण समझमें आजायगा -- फिर तो वुद्धिमान एवम् विद्वानोंका विचार हो सो सही, मेरी अल्प बुद्धि पर ख्याल न करें; किमधिकम् विज्ञेषु ।
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J. L. Ratadiya..
[रभारी