Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1911 Book 07
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 393
________________ જીવન જુજ ભેગવી બાળ મરતા, સ્વપ્ન સુખ ન લગાર; દેરંગી દુનિયા હાંસી કરીને, ટકાવે નહિ વહેવાર. મરે તે અકાળે પ્રજા ભાવી તેની બનતીએ, ઠીંગણી, નહિ બળવાન સાર્થક શું દેશનું સાધે તે? પડતીનાં છે નિશાન. જીગર તે બાળે– खेम-वा-भ-५७या. (२ शुन) सदाचार वगर्न. (लेखक-प्पालगीया काकावारा चंपालालजी चोखबंदजी देवळीया-माळवा.) (ndin Y. ३४१ थी) दुसरा चोरी प्रहारो यष्टयाथै स्तदनु शिरसा मुंडनमथो । खरारो पाटोप स्तदनु च जगद गालि सहनम् || ततः शूलारोहो भवति च ततो दुर्गति गांत ॥ . विचार्ये तच्चौर्या चरण चरितं मुंचति न कः ॥ अर्थ इसका यह है कि-चोरी करनेसें अवल तो लकडी आदिक से मार पडति हे फिर मस्तक (शिर) छेदाना पडता है-पिछे खर (गधा) पे बैठना पडता है, और जगतकि गालिये सहन करनी पडतिहै और शूलि फांसीपे चडनां पडताहै, और पर भवमें दुर्गति (नरक) में जाना होताहै. एसी चोरीको कौन त्याग न करे ? अर्थात सब विचारशील करे. इस व्यसन वालेका कोइभी भरोसा न करे और उसको कारागार (जेलखाना) अवशय भोगना पडताहै. जिस (जेलखाने) को इस भव का नरक कहने मे कोई हर्ज नहीं है.

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