Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1911 Book 07
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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जीवदया जैन सीरीज.
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आज कल हमारे बहुत से भारत निवासी अपने हाथोंसे निरपराधी जीवों को दुख दे रहे हैं, और दिन व दिन मांसभक्षी बनते जारहे है जिनके हृदय में उन विचारे निरपराधी मूक पशु आदि जीवोंकी तरफका बिल्कुल रहम नहीं हो रहा है, आज दिन उसीका फल यह निकल रहा है कि तमाम भारत दुख और ( निर्धन ) होता चला जारहा है, दिन व दिन जिन बीमारियोंके नामभी सुनने मैं नहीं आते थे जैसे महामारी ( प्लेग ) हैजा आदि उन बीमारियोका भारतको सामना करना पह रहा है, जिधर हम घरो में द्रष्टि पसार कर देखते हैं उधर विधवाओंके झुंड के झुंड दिखलाई दे रहे हैं, तमाम धन, बल, वीर्य, पुरुषार्थ, नष्ट होते जा रहे हैं, कहां वह समय था कि राम, लक्ष्मण, भिमलेन: दिसे वली, साहसी इस पृथ्वी पर पैदा होते थे, कहां आज उसी भारत वासियोंकी यह दशा हो रही है कि एक दिनी निरोग अवस्थाका नहीं मिल रहा हैं, रोज व रोज वैद्य डाक्टर महाशयोंकी आधीनी उठा रहे हैं, पस। भारत वासियो ? यह सब तुम्हारे कर्तव्य का ही फल है इसलिये ।
प्रिय दूर दर्शियो ? अबभी यदि आपके हृदय में कुछभी उन मूक निरपराधी जीवोंकी दयाका अंश हैं अगर आप सर्व प्रकार की बीमारियों से बचकर सुखी होना चाहते है तो शीघ्र ही आपको अपने गिरे हुए आहार विहारको सुधार कर शुद्ध आहार विहार कर अपनी शरीरकी तन्दुरस्तीको हासिल करना चाहिये. महन्त पुरुषो ? आपका यह भारत ऐसे २ उत्तम नाज, धान्य, फल मेवा आदि करके परिपूर्ण भरा हुआ है जिसको खाकर हम नीरोग तन्दुरस्त और ताकतवर बन सके हैं
अगर किसी साहबानका यह ख्याल हो कि मांस शरीरको पुष्ट करता है ताकत पहुंचाता है यह ख्याल बिल्कुल गलत है, चूंकि इंग्लैण्ड अनीका के बडे २ वैज्ञानिक, सिविल सर्जन डाक्टर पदार्थ वेत्ता, साइन्स ज्ञाताओंने अच्छी तरहसे परीक्षा करके यह साबित करके दिखला दिया है कि मांस शरीरको ताकत पहुंचानेवाला नहीं है, वल्कि अनेक तरहके रोग मांस भक्षण से उत्पन्न (पैदा) होते हैं, " अभी बहुतसे " पत्रों में प्रकाशित हुआ है, कि इग्लैण्ड में बडे २ डाक्टरोंने इस बातको अच्छी तरह से परीक्षा (जांच) करके यह बात