Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1911 Book 07
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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-२न्स १२८४.
અકબર
के विपरीत मार्गपर चला देनेसे भूल गये वा यो कहिये कि-बम्बईमे जब दूसरी कोन्फरन्स हुई उस समय एक वर्षकी बालिका सभाकी वर्ष गांठके महोत्सवपर श्री महावीर स्वामीके उक्त वचनको उन्होने एकदम तिलांजलि देदी यद्यपि उपर से तो एकता २ पुकारते रहै परन्तु उनका भीतरी हाल जो कुछ था वा उसका प्रभाव अब तक जो कुछ है उसका लिखना अनावश्यक है फिर उसका फल तो वही हुआ जो कुछ होना चाहिये था सत्य है कि--अवसर चूकी डूमणी गावे आल पंपाल ॥ प्रिय वाचकवृन्द इस बातको आप जानते ही हैं कि-एक नगरसें दूसरे नगरको जाते समय यदि कोई शुद्ध मार्गको भूल कर उजाड जंगलमें चला जावे तो वह फिर शुद्ध मार्गपर तब ही आ सकता है जब कि कोई उसे कुमार्गसे हटाकर शुद्ध मार्गको दिखला देवे इसी नियमसे हम यह कह सकते हैं कि-सभाके कार्य कर्ताभी सत्पथपर तबही आ सकते है जब कि कोई उन्हे सत्पथको दिखला देवे चूँकि सत्पथका दिखलानेनाला केवल महजनोपदेश (महात्माओंका उपदेश) ही हो सकता है इस लिये यदि सभाके कार्य कर्ताओंको जीवनरूपी रंगशालामें शुद्ध भावसे कुछ करनेकी अभिलाषा हो तो उन्हे परमात्माके उक्त वाक्यको हृदयमें स्थान देकर अपने भीतरी नेत्र खोलने चाहियें क्योंकिजब तक उक्त वाक्यको हृदयमें स्थान न दिया जावेगा तब तक उन्नति स्थानको पहुंचानेवाला एकतारूपी शुद्ध मार्ग हमारी समझमें स्वप्नमेंभी नही मिल सकता है इस लिये कोन्फरन्सके सभ्योंसें तथा सम्पूर्ण आर्यावर्त निवासी वैश्य जनोसे हमारी सविनय प्रार्थना है कि मेरी सब भूतोंसे मैत्री है किसीके साथ मेरा वैर नहीं है | इस भगवद्वाक्यको सच्चे भावसे हृदयमें अकिंत करें कि जिससे पूर्ववत् पुन: इस आर्यावर्त देश की उन्नति हो कर सर्वत्र पूर्ण आनन्द मंगल होने लगे. ॐ शान्ति शान्ति शान्ति..
. सालगाया काकावारा चम्पालालजी तस्यात्मज चोखचन्द
देवगढ राजपूताना (मालवा) कांठल (नोट) यह लेख जैन सम्प्रदाय शिक्षा नामक गन्थसें पाठकोंकी सेवामे भेट है.