Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1911 Book 07
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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निवेदन पत्रिका .
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॥ त्रतीय कन्याविक्रय ॥ - ये रीवाज बडा भयानक है, परन्तु ईसमें दो विषय विचारणीय जरूरी है, एक देह दुसरा दागीना ईनकी हद कायमकि जाय य न किया जाय तो धार्मिक व संसारीक दोनो पक्षकों बडा भारी नुकशान है प्रत्यक्ष देखो,व्यभीचारकी वृद्धि होने लगी और पुनर्विवाहकी भी जोक करने लगे कौन करे ईसका कारन तो अर्ज उपेकी है, तो कायदा बान्धे उस वक्त ईनकाभी पास करें, एक ब्रद्ध दुसरा बालक तीसरा अपढ चोथा रोगी पांचमा अधर्मि छठा एक स्त्रीकी मोजुदगीमें दुसरी इनकों कन्या न देनी समुद्रके कार है तो समुद्रही तोडे तो पार बान्धने कौन समर्थ.
चतुर्थ वैश्याका नृत्य ॥
श्लोक. दर्शनात् हरते चितं । स्पर्शनात् इरते बलम् ॥
मैथुनात् रते वीर्य। वैश्या प्रत्यक्ष राक्षसी॥ १॥ .. प्रियवरों मेफीलमें पिता पुत्र कुटम्बी मेल मुलाकाति सबही। नाच देखती वक्त सबही सब स्वस्तीकी नीघासें देखते है तो आपसमें क्यारीस्तेदारी हुई हाय २ धर्म निन्दक दुर्गतीका मार्ग जाते हुवे करें ॥ अफसोस है की निराश्रितो को आश्रय देनेमें तो कै तरह के विचार होते हैं। मगर एसे कार्यमे सैंकडौ रूपैये व्यय करनेसें सोच नही होता देखो कविने कहा सो पेस है ।
॥ कवित ॥ सुकाज को छोड कुकाज रचैं धन जात है व्यर्थ सदा तीनकों एक रांड बुलय नचावत है, नही आवत लाज जरा तीनको मरदंग भनै धृक है धृक है सुरताल पुछ किनको तब उतर रांड वतावत हैं धृक है ईनको ईनको ईनको... .