Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1911 Book 07
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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જૈન કે ફરન્સ હેરલ્ડ.
[ઓગષ્ટ
लिये उनका प्रभाव सर्वत्र फैल रहाथा जिसके उदाहरणारूप नररत्न वस्तुपाल और तेजपालके समयमें देसे और बीसे ये दो फिरके हो चुके हैं
प्रिय वांचक वृन्द क्या यह थोडीसी बात है कि--उस समय नगरसें दुसरे नगरको जानेमें महानोका समय लगताथा और वही व्यवस्था पत्रके जानेमें भी थी तोभी वे लोग अपने उदेश्यको पूराही करतेथे इसका कारण यहीथा कि-- ये लोग अपने वचनपर ऐसे द्रढ थे कि-मुखसे कहने के बाद उनकि बात पत्थर की लकीरके समान हो जातीथी अब उस पूर्व दशाको हृदय स्थल कर वर्तमान दशाको सुनिये देखिये वर्तमानसें-रेल तार और पोष्ट आफिस आदि सब साधन विद्यमान है कि--जिनके सुभितेसे मनुष्य आठ पहरमें कहांसे कहांको पहुंच सकता है कुछ घंटोमें एक दूसरेको समाचार पहुंचा सकता है इत्यादि परन्तु अफसोस है कि इतना सुभिता होनेपरभी लोग सभा आदिमें एक प्रत होकर एक दुसरसे सहानुभूतिको प्रकट कर अपने जात्युत्साहका परिचय नहीं दे सकते है देखिये आज जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्सकों स्थापित हुए ८ वर्षसेभी कुछ अधिक हो चुका है इतने समयमेंभी उसके ठहगवका प्रसार तो दूर रहा. किन्तु हमारे बहुतसे भाईयोने तो उस सभाका नाम तक नहीं सुना है तथा अनेक लोगोने उसका नाम और चर्चा सुना है परन्तु उसके उदेश्य और मर्ममें अद्यापि अनाभि है देखिये जैन सम्बधी समस्त समाचार पत्र सम्पादक यही पुकार रहे हैं कि कोन्प्रेसने केवल लाखों रुपये इकठे किये हैं इसके सिवाय और कछभी नही किया है इसी प्रकारसे विभिन्न लोकोंकी इस विषयमें विभिन्न सम्मतियां है जैसाकि प्रोवेन्सीयल सेक्रेटरी धीया लक्ष्मीचन्दजीने सचासो मेरा लेखमें प्रथम पक्ष द्वितीय पक्ष दीखलाता है-हमें उनकी विभिन्न सम्मतियों में इस समय हस्तक्षेप कर सत्या सत्यका निर्णय नहीं करना है किन्तु हमारा अभीष्ट (विचार ) तो यह है किलोग प्राचीन प्रथाको भूले हुए है इस लिये वे सभा आदिमें कम एकत्रित होते हैं तथा उनके उदेश्यो और मर्माको कम सणझते है इस लिये वे उन ओर ध्यान भी बहुत ही कम देते हैं रहा किसी सभा (कोन्फ्रेंस आदि) का विभिन्न सम्मति योंका विषय सो सभा सम्बंधी इस प्रकारकी सब बातोका विचार तो बुद्धिमान और विद्वान स्वयं ही कर सकते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि--प्रायःसबही विषयों