Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1911 Book 07
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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જૈન કોન્ફરન્સ હેરડ.
[ माय
"२. एक हफते (सप्ताह) में २ दिन किसी पशुके प्राण न लिये जावें ॥ १ तो वृह स्पतिवार को जो मेरे राज्याभिषेकका दिन है।
२ इतवारको जो मेरे पिताक जन्म और सूर्यभगवानसे संबंध रखता है मेरे पिता इसदिन कभीमी मांसका नाम नहीं लेतेथे १५ वर्षसे अधिक हुए होंगे कि वे बिलकुल मांस खातेही नहींथे और इन दोनों दिनों ( इतवार और गुरुवार) में तो उन्होंने सब लोगोंको मांस खानेका निषेध कर दियाथा."
हमने अकबर और जहांगीर बादशाहोंके इसी शिष्टाचारके आधार पर श्रीमान भारत सम्राट सप्तम एडवर्ड के राज मुकुट धारण करनेका उत्सव दिलीमें होनेसे कुछ पहिले उर्दू अखबारों में १ लेख इस विषय का छपवायाथा कि इस सुअवसर पर बेजुबान पशुओंकी जीवरक्षाका कुछ प्रबंध होना चाहिये क्योंकि यह समय अकबर और जहांगीर बादशाहोंके समयसे अच्छी सम्यता और न्याय नीतिका समजा जाता है अधिक न हो तो अभी कमसे कम उन बादशाहोंके समयके बराबर ही जीवहिंसा कमकी जावे और उसके वास्ते वर्ष भरमें केवल दिन ही इस पुण्य कार्यके लिये मांगेथे जो श्रीमानों के पुण्य और प्रतापकी वृद्धि के हैं और जिनमें अवश्य इन बेबश गूंगे और लोकोपयोगी पशुओं को जीवदान मिलनेका सुअवसर है।
(१) श्रीमती भारतेश्वरी विक्टोरिया राजरानी के राज्याभिषेकका दिन (२) भारत सम्राट श्रीमान सप्तम एडवर्ड का जन्म दिन. (३) श्रीमती राजरानी अलकजेंड्राका जन्म दिन. (४) श्रीमान राजकुमार प्रिन्स आफ वेल्सका जन्म दिन.
(५) श्रीमान प्रिन्स कास्टर्ट (सम्राटके पिता.) के निरवाणका दिन. . (६) श्रीमान प्रिन्स विक्टर (भूत पूर्व प्रिन्स आफ वेल्स) के देहांतका दिन.
के पहिले वर्ष जीवहिंसा नहीं हुई फिर उनके राजत्व कालके प्रति वर्ष एक एक दिन बढता गया जिसकी संख्या अंतिम बर्व में ६० तक पहुंच गईथी.
१ सालभर में ५२ हफतों के १०४ दिन यहभी पशुओंके अभयदान केथे।