Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म-दर्शन नेमिनाथ एवं अन्य तीर्थङ्कर :
भगवान पार्श्व के पहले होनेवाले नेमिनाथ अथवा अरिष्टनेमि कृष्ण के चचेरे भाई थे। यदि कृष्ण की ऐतिहासिकता स्वीकार की जाती है तो नेमिनाथ को भी ऐतिहासिक पुरुष मानना चाहिए । वे सौर्यपुर के अन्धकवृष्णि के पौत्र एवं समुद्रविजय के पुत्र थे। द्वारका के राजा उग्रसेन की सुपुत्री राजीमती के साथ कृष्ण ने उनकी शादी ठीक की थी। उन्हें रैवत (गिरनार) पर्वत पर मुक्ति प्राप्त हुई थी। ऐसी जैन परम्परा है कि मेमिनाथ से पहले २१ तीर्थङ्कर और हुए थे, जिनमें ऋषभदेव प्रथम थे। उन महान् आत्माओं की ऐतिहासिकता की स्थापना कोई आसान काम नहीं है। महावीर :
महावीर २४वें यानी अन्तिम तीर्थङ्कर थे। पालि ग्रन्थों के अनुसार वे बुद्ध के समसामयिक थे पर दोनों की कभी भेट नहीं हुई। प्रारम्भ के प्राकृत ग्रन्थों में बुद्ध का नामोल्लेख नहीं हुआ है। इससे मालूम होता है कि महावीर और उनके अनुयायियों ने बुद्ध के व्यक्तित्व को विशेष महत्त्व नहीं दिया। लेकिन पालि-त्रिपिटक में महावीर को बुद्धकालीन छः तीर्थङ्करों में से एक माना गया है। इससे मालूम होता है कि महावीर एक प्रभावशाली पुरुष एवं अग्रगण्य श्रमण थे।
श्वेताम्बर जैन परम्परा के अनुसार महावीर वि०सं० से ४७० वर्ष पूर्व मुक्त हुए थे और दिगम्बर जैन परम्परा के अनुसार उन्हें शक सं० से ६०५ वर्ष पूर्व मुक्ति प्राप्त हुई थी। इन दोनों में से किसी भी गणना के आधार पर महावीर का मुक्ति-काल ई० पूर्व ५२७ आता है। चूंकि उन्होंने ७२ वर्ष की
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