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MARCH, 1892.]
PATTAVALIS OF THE DIGAMBARAS.
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पञ्च सये पण्ण अन्तिमजिणसमय जादे सु। उप्पण्णा पञ्च जणा इयङ्गधारी मुणेयध्वा ।। १२ ॥ भवलिमाहणन्दि य धरसणं पुप्फयन्त भूदवली। अडवीसं इगवीसं उगणीसं तीस वीस पुण वासा ।। १३ ।। इगसय अठार वासे इगधारी य मुणिवरा जारा ।
छ सय तिरासि य वासे णिवाणा अङ्गछित्ति कहिय जिणे ॥ १४ ॥ ऐसे विक्रम प्रबन्ध वि लिखा है। यह पूर्वोक्त प्रकार श्रीमहावीर स्वामी से लेय करि जिनमत विर्षे अनुक्रम से आचार्यनि की परिपाठी है।
(10) वहरि श्रीवीर स्वामी कूँ मुक्ति गये पीडै च्यार से सत्तर ७० वर्ष गये पीछे श्रीमन्महाराज विक्रम राजा का जन्म भया ।। वहरि पूर्वोक्त सुभद्राचार्य ते 20 विक्रम राज को जन्म है । वहरि विक्रम के राजपद मैं वर्ष चत्वारि ४पीछे पूर्वोक्त दूसरा भद्रवाहु · आचार्य का पह हुवा ॥ बहुरि भद्रवाड्ड का सिष्य गुप्ति नाम । ता के नाम तीन । गुप्तगुप्ति १ अहवलि २ विशाखाचार्य ३ ॥ बहुरि जा के च्यार ४ सिष्य । नन्दि नाम जाति के वृक्ष के अधोभाग के विखें चातुर्मास का वर्षा योग धारया ऐसा माघनन्दि आचार्य जी नै नन्दिसङ्क स्थापित कीया ॥१॥ बहुरि जा में तृणतल विषै वर्षा योग स्थापित कीया, सो जिनसेन नाम सेनसङ्ग स्थापित कीया।।२॥ वहरि सिंह की गुफा विर्षे वर्षा योग धारचा, जा ते सिंहसङ्ग स्थाप्या ॥३॥वहरि जानै देवदत्ता नामा वेश्या के गृह के विष वर्षा यांग धारपा, सो वसङ्क भया । ऐसें जिनमत मैं पाँचमाँ काल विष आचार्यनि के च्यार सङ्घ भए ।।
(11) बहुरि पूर्वोक्त नन्दिसङ्घ के विषै नन्दिसङ्घ १, पारिजात गच्छ एक १, वलात्कारगण, च्यार मुनि के नाम कहिये नन्दि चन्द्र २ कात्ति ३ भूषण ४, ऐसे स्थापित भये ।। तथा श्रीमूलसङ्कनन्यानाय १ सरस्वती गच्छ १ बलारकारगण १, ऐसे च्यार ४। वहरि पूर्वोक्त नन्दि १ चन्द्र २ कीर्ति ३ भूषण ४, ऐसे च्यार मुनि के नाम स्थापे ।। (12) तदुक्तं श्रीइन्द्रनन्दि सिद्धान्तो कृत नीतिसारे ।। श्लोक ।।
अर्हदली गुरुश्चक्रे सडसडनं परं ॥१॥ सिंहसो नन्दिसः सेनसडी महाप्रभः ।
देवसद्ध इति स्पष्टः स्थानस्थितिविशेषतः ॥२॥ (13) वहरि श्रीमहावीर स्वामी पीछे ४९२ च्यारि से वाणवै वर्ष गये सुभद्राचार्य का वर्तमान व २४ चौईस, सो विक्रम जन्म ते वावीस वर्ष ।। वहरि ता का राज्य ते वर्ष ४ च्यार दुसरा भद्रवाह हुवा जानना ॥
(14) वहरि श्रीमहावीर नै च्यार से सत्तर ४७० वर्ष पछि विक्रम राजा भयो।ता के पीछे आठ वर्ष पर्यन्त वालाक्रीडा करि । ता के पीछे सोलह वर्ष ताई देशान्तर विषै भ्रमण करि । ता के पीछे छप्पन २६ वर्ष ताँई राज कीयो नानाप्रकार मिथ्यात्व के उपदेश करि संयुक्त रह्यो । वहुरि ता के पीछे चालीस वर्ष ताँई पूर्वमिथ्यात्व . छोडि जिनवर धर्म कूँ पाल करि देवपदवी पाई ।। ऐसे विक्रम राजा की उत्पत्ति आदि है। (15) तदुक्तं विक्रमप्रबन्धे । गाथा ।।
सत्तरि चदुसरजुत्तो तिण काले विक्कमो हवह जम्मा । अठ वरस वाललीला सोडस वासे हि भम्मिए देसे ॥१॥ रसपण वासा रज्ज कुणन्ति मिच्छावदेससंजुत्तो।
चालीस वास जिणवरधम्म पाले य मुरपयं लहियं ॥२॥ (16) ऐसे श्रीमूलसा के विर्षे गण-गच्छ-सख-आदि नाना प्रकार की भई है ।। तदुक्तं नीतिसारे काव्यं ।।
पूर्व श्रीमूलसङ्गात्तदनु सितपटः काष्ठसशस्ततो हि । तत्राभूदाविराख्यः पुनरजनि ततो यापुली सज एकः॥ तस्मिन् श्रीमूलस मुनिजनविमले सेन नन्दी च सजी।
स्थातां सिंहाण्यसको ऽभवदुरुमहिमा देवसङ्गश्चतुर्थः ॥२॥ W Ms. भूतवली।
2. Here the date is wanting in the MS. 1 Ms. वलात्कारगुण ।
22 Metre: Sragdhard.