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MARCH, 1892.]
PATTAVALIS OF THE DIGAMBARAS.
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drakîrtti, who, from the connection in which his name appears, must have been the immediate successor of Jñanakirtti, Mâghachandra and Sûrachandra (i.e., Nos. 60, 61, 62). Accordingly he must be No. 63, who in the nominal list of C, no less than in all others, is known as Gangåkirtti. Similarly, we have in $23a Kanakakirtti and a Proshthilakirtti, who would clearly seem to be identical with Nos. 65 Hemakirtti and No. 79 Prakshintikirtti. There is, however, another difficulty in the account given in $ 23, which I am unable to solve. That account of the ponti. fical succession does not agree with the pattávali which precedes it. The four pontiffs Sûrachandra, Mahachandra, Jnanakirtti, and Narendrakirtti are made to follow Vasantakirtti, whereas in the pattávali they preceded him by a long interval. Again in § 23 Vasantakirtti is made to be the 9th after Kanakakirtti, whereas in the pattivali (if Kanaka is the same as Hema, No.65) he is the 13th after him. The table of residences, however, should be compared.
The introductory and concluding portions I again give in extenso, but the pattávali proper, as before, in abstract tabular form. The bracketed remarks in the last column of the tables are again my own.
TEXT.
Introduction of Pattavalt c. (1) ओं नमः सिद्धेभ्यः ।। अवार पञ्चमा काल विर्षे श्रीमहावीर स्वामी के मुक्ति हुए पीछे वा की हीणता कालदोष ते भई है। जा ते या के पार गिणती के आचार्य भए है, सो अनुक्रम से प्रसङ्ग करि किञ्चित वर्णन करिये है।
(2) अन्त के तीर्थकर महावीर स्वामी कूँ मुक्ति भए पछै बासठि ६२ वर्ष ताई केवलज्ञान रह्या, सो कहिये है। जब श्रीवर्धमान स्वामी. मुक्ति भई, तिस पीछै श्रीगौतम गणधर · केवलज्ञान उपन्या । सो वारह वरष १२ पर्यन्त रह्या ।। वहरि ता के पीछे सुधर्म स्वामी कूँ केवलज्ञान उपज्या । सो भी वारह वर्ष ताई केवल रह्या ।। बहुरि ता के पीछे जम्बू स्वामी कू केवलज्ञान उत्पन्न भया । सो वर्ष ३८ अडतीस ताई रह्या । ऐसै बासठि वर्ष ताई केवल - ज्ञानी तीन पश्चम काल विर्षे प्रवर्त्या ।।
(3) वहरि ता के पीछे ग्यारह अङ्ग चरदह पूर्व के धारक अनुक्रम सै पाँच श्रुतज्ञान के पाठी श्रुतकेवली हुवा।। ता में प्रथम विष्णुकुमार वर्ष १४ चउदह । वहरि नन्दिमित्र वर्ष १६ सोलह । वहुरि अपराजित वर्ष २१ । वहुरि गोवर्द्धन वर्ष १९ उगणीस । बहुरि भद्रवाह वर्ष २९ गुणतीस ॥ ऐसें १०० एक सौ वर्ष पर्यन्त या का काल अनुक्रम ते रह्या ।। इहाँ ताँई श्रीमहावीर स्वामी कूँ मुक्ति गयें एक सो वासठि १६२ वर्ष जानना।
(4) बहुरि ता के पीछे ग्यारह अङ्ग दश पूर्व के धारक ग्यारह मुनि भया । ता को काल वर्ष १८३ एक सो तिरासी को अनुक्रम ते है। ता मैं विशाखाचार्य वर्ष दश १०, प्रोष्ठिलाचार्य वर्ष १५ पन्द्रह, नक्षत्राचार्य वर्ष १७ सतरह, नागसेनाचार्य वर्ष १८ अवारह, जवसेनाचार्य वर्ष इकवीस २१, सिद्धार्थाचार्य वर्ष १७ सप्तदश, धृतिसेनाचार्य वर्ष १८, विजयाचार्य वर्ष तेरह १३, बुद्धिलिकाचार्य वर्ष २०, देवाचार्य वर्ष १४ चउदह, धर्मसनाचार्य वर्ष से लह १६ ।। ऐसे याँ का १एक सो तियांसी वर्ष का अनुक्रम ते काल का वर्तमान है।इहाँ ताँई श्रीमहावीर कुँ मुक्ति गये वर्ष ३४५ तीन से पतालीस भए जानना ॥
(5) वहुरि ता के पीछे ग्यारह अङ्ग के पाठी पाँच मुनि भए ।। ता मैं नक्षत्राचार्य तौ श्रीमहावीर ते तीन सै पंतालीस वर्ष पाछै हुवा, वर्ष १८ अठारह ताई रह्या ॥ बहुरि महावीर ते तीन सै तरेसठि वर्ष पी. जयपाल नाम आचार्य भया । तिन का वर्तमान काल वर्ष वीस २० का है। वहुरिता के पीछे तथा श्रीमहावीर नाथ ते तीन सै तियाँसी वर्ष ३८३ पीछे पाण्डवाचार्य भया । ता का वर्तमान काल वर्ष गुणतालीस ३९ का रह्या ।। बहुरि ता के पीडै तथा श्रीवर्द्धमान तीर्थङ्कर ते ५२२ च्यार से बाईस वर्ष पीछे ध्रुवसेनाचार्य हुवा । ता का वर्तमान काल वर्ष चउदह का है ।। बहुरि ता के पीछे श्रीसन्मति पीडै ४३६ च्यार से छतीस वर्ष गये कैसाचार्य भए । ता का वर्तमान वर्ष वत्तीस ३२ का है । ऐसें पाँचू आचार्यनि का अनुक्रम से वर्ष एक सौ तेईस १२३ जानना ।। ए सर्व केवल एकादशाकधारी है।
(6) वहुरि श्रीमहावीर स्वामी पीछे च्यार सा भडसठि १६८ वर्ष गये सुभद्राचार्य भए । ता का वर्तमान काल के वर्ष छह ६॥ वहुरि ता के पीछे तथा श्रीमहावीर स्वामी पीछे च्यार से चहौत्तर ४७४ वर्ष गये यशोभद्राचार्य भए । ता का वर्तमान काल के वर्ष १८ अगरह है । वहुरि ता के पीछे तथा श्रीवीर नाथ कूँ मुक्ति हुवा पीछे ४९२ च्या. र सौ वाणवै वर्ष गये दूसरा भद्रवाह नामा भाचार्य भए । या का वर्तमान काल वर्ष २३ तेईस का है ।। बहुरिता के