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MARCH, 1892.)
PATTAVALIS OF THE DIGAMBARAS.
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Here follows the remainder of the pattâ vali, which I omit. The method of each entry is sufficiently shown by the two initial entries above quoted. But the substance of the whole I again give in a tabular form below. The final entry runs as follows:
(22) बहुरि ता के पीछे पिच्यासीमाँ पह संवत् १५५० चोदह से पचास का माघ शुक्ल पञ्चमी ५३ पुाभचन्द्रमया सा का गृहस्थकाल का वर्ष १६ सोलह, दीक्षावर्ष १४ चौदह, पहस्थवर्ष ५६ छप्पन मास ३ तिन दिन ४ च्यार विरह दिन ११ ग्यारह सर्वायुवर्ष ८६ डिंयासी मास ३ मीन दिन पन्द्रह १५ की भई । इत्यादिक पदावली जानना ।। ___(23) ता के पीछे भद्रबाहु सौ लेर मेरुकीत्ति ताई पह छवीस पर्यन्त दक्षिपदेश विर्ष भहलपुरी में भए ॥२६॥ वहरि महीकीति भादि लेर महीचन्द्रान्त ताँई छवीस पह मालवा विर्षे । ता मैं भठारह १८ उज्जैनी मैं भये । चन्दरी के विर्षे ४ च्यार भए । भेल मैं ३ तीन भए । कुण्डलपुर एक भए १।। यह सर्व छब्बीस २६ भए । बहुरि ता के पी, वृषभनन्दि आदि सिंहकीति अन्त ताई पह वारह १२ वारौं विषै भए ।।१२।। वहरि ता के पीछे कनककीर्ति आदि वसन्तकीय॑न्त पह दश १० चीतोड कै विष भए ।।१०।। वहुरि सूरचन्द्र १, माषचन्द्र १, ज्ञानकीर्ति १, नरेन्द्रकीर्ति १, ये च्यार पड वषेरै भये । ४।। बहुरि प्रोष्ठिलकीर्ति आदि प्रभाचन्द्रान्त पह ६ छह. अजमेर भये । ६३ । बहुरि पग्रनन्दी आदि भचन्द्रान्त पह२ दोय गुजरातदेश वि वाग्वर देश मै भये । वहरि सकलकात्ति आदि वाग्वर देश में भए। ऐसें श्रीमूलसवा नन्द्यानाय सारस्वतीगच्छ बलात्कारगण की पहावली अनुक्रम में जानना ऐसै ।। ___(24) और सेनंसद्ध १, सिंहसङ्क १, देवसा की १ पहावली जुदी है। सेनसङ्ग मैं जिनसेन आदि ऐसे ही सर्वत्र जुनी जुही पहावली आचार्यनि की है । ता के विर्षे सेनसा मैं राज, वीर २, भद्र, सेन ४. ऐसेच्यार नाम है। बहुरि सिंह १, कुम्भ २, आश्रव ३, सागर ४, ऐसे व्यार ४ सङ्ग के नाम सिंहसा में है। पहरि देव १, इत्त २. नाग ३, लङ्ग, ऐसें सिंहसकते और चौथा देवसद्ध वि च्यार नाम है ॥
(25) बहुरि पूर्वोक्त सेनसङ्ग विय सेनसङ्क पुष्करगच्छ, सूरस्थगण जाननौं । बहुरि सिंहस चन्द्रकपाट गच्छ काणूरगण सिंहसक विर्षे है ।। बहुरि देवसद्ध पुस्तकगच्छ देशीगण यह देवसद्ध विर्षे है। (26) तदुक्तं गाथा ।।
णन्दी चन्दो कित्ती भूसण णामा०हि पन्सिजस्त। सेणो राजोर वीरो भहो तह सेणसहुस्स ॥ १॥ सिंहो कुम्भो आसव सायर नामा हि सिंहसास्स ।
देभो दत्तो नागो लङ्गो तह देवसहस्स ॥२॥ इत्यादि दिगम्बरानाय विर्षे आचार्यनि की परिपाठी जानना ।।
TRANSLATION. Om! Salutation to the Perfect ones! In the fifth period, after the death of the Lord Mahavira, its decadéace took place on account of the badness of the times. Of the several pontiffs who came after him, I am going to give a brief account in their proper order.
$ (2) After the death of the last Tirthan kar, the Lord Mahavfra, for 62 years, there abode Kevala-jiminins. These I now name. After the Lord Vardhamāna had died, the Gapadhara Gautama attained the knowledge of Kavalin. He abode for 12 years. After him the Lord Sudharnman attained aKevalin's knowledge. He too, abodeas a Kevalin for 12 years. After him the Lord Jamba attained the knowledge of a Kevalin. He abode for 38 years. Thus, for 62 years there lived three Kevalins in the fifth period.
$ (3) After this, there came in syccession five Srutakêvalins, men versed in sacred lore, who possessed a knowledge of the eleven Angas and the fourteen Pârvas. . Among them first was VishyakumAra (who abode) for 14 years after him (came) Nandimitra for 16 years: next Aparajita for 22 years; next Govardhana for 19 years; next Bhadraba hu I. for 29 years. Thus their total period extended to 100 years. Up to this point of time 162 years must be understood to have passed since the death of the Lord Mahavira. MS. baat.
Ms. जाने। Ms. रजो। MS. तहेव . m.