Book Title: Indian Antiquary Vol 21
Author(s): Richard Carnac Temple
Publisher: Swati Publications

View full book text
Previous | Next

Page 145
________________ MAY, 1892.] ANOTHER INSTALMENT OF THE BOWER MANUSCRIPT. 137 2 . . . . न संशयः प्रथमा सजा-३२२ विजेष्यसि ऋपूं सवा प्रत्यार्थी वलवांश्च ते लप्स्यसे प्रथम स्थान पश्चाच्छो कमवाप्स्यास3 द्वितीया सजा-२३२ न च जानीषे कार्याणि पश्चात्तपेन युज्यसे भविष्यति च ते लाभ सुमुखस्तव देवता-द्वितीया सजा4 २२३ शरीरे तव सन्देह समतीतो दुरासदः देवतानां प्रसादेन प्रागुण्यं तव केवलम् प्रथमः काण ३३१ प्रागुणन्ते शरीरस्य 5 लाभश्चार्यश्च प्राप्तये उपस्थितं च ते कल्याणं मरुतस्य वची यथा-द्वितीयः काणः तन्त्र ३१३ आरोग्यं पुलांभं च प्रेक्ष्यसे नाच संशयः लप्स्यसे सर्वथा भद्र 6 भोगांश्च विपुलां तथा तृतीयः कणतन्त्रः १३३ मिष्या वदसि यत्किच्चि मिचं द्विषसि नित्यदा देवतानां प्रसादाबा तिष्ठत श्रेयो भविष्यति - Fifth Leaf : Reverse. 1 प्रथमचक्षुणः ३११ भोगानां विप्रयोगस्ते न चिरेणैव दृश्यते अन्यं संप्राप्स्यसे स्थानं मा विषाद. करिष्यसि-द्विती यचक्षुणः १३१ अर्थसिद्धिय चैव 2 कलस्थानं तथैव च प्राप्स्यसे सर्वकामांश्च मरुतस्य वचो यथा-तृतीयचक्षुणः ११३ विप्रमुक्तस्त्वमय यो मिचैश्च सुहदेव च उत्थानं चिन्तयानस्थ 3 उद्विम इव दृश्यते-प्रथमा पाची २२१ चलाच . . दं स्थानं दृश्यते समाकुलं नच नारम्भसे कार्य दुकवेन च विमुच्यसे-द्वितीया पच्ची-१२२ 4 दिशः सर्वा समारकाम्ता कालधर्म कुरुष्वती सुखं ते न कार्यन्ते ते न तेषु कदाचनः [हतीवा पच्ची)-२१२ पशु बन्धाश्च यज्ञां वै विविधान्यक्षसे तथा 5. . जिच समृद्धाने दास्यसे नाच संशयः तृतीयः पञ्ची २१२ प्रथमा खरी ११२ अतिक्रान्ता परिक्लेशा दुक्खं चैव समानतःहाभाशुभाद्विप्रभुको सि लाभस्ते स6 मुपस्थित-॥ II. Transliteration. First Leaf : Reverse. 1 Om Namo Nandi-rudr-esvariya - namo Achiryebhyah namo tsvariyn - namd Mani(bhad)r(Aya) [namas=sarvva-Yakshebhyab] 2 namali sarv va-Dê vêbhyah "Sivaya namah Shashthiyê namah Praja patayê namah Rudraya namaḥ namo Vaiśravaņaya namô Narutánam namah prasa3 ka patantu imasy-Arthasya kâranê hili 2 kumbhak-ari-matanga-yukta patantu yat=satyam sarvva-Siddhanam yat=satyam Sarvva-vâdînâm têna satyêna Batya-samayena nashtam vinashtam 4 [ksb]e(m)-ak[sh]emim labh-alabham jay-lijayam Siv=Anudarsaya svir -Satya narayanê ch-aiva dêvatê Rishishu ch=aiva satyam mantram vșitis satyam samaksha Patantu svâhâ satyam ch-aiva tu drashtavyan ni5 .......... mantr-aushadhini cha nimitta-valam-am-antaram® mrisha_tayām devatam Vishnu navik lyam chantayinta | 444 Namah purusha-singhasya prasannas=tê Janarddanal 0] 6 nihatâ sattravas-sarvvê yadi psasê kamno [11] Navikki 333 Na tê sókô na vîyêsê nich-ôchcham na cha tê bhayah [0] 1 2 • The bracketed portion is crossed ont in the original. * Read valam-antaran; am is superfluous. Read audha. • Reading of the fourth pada is corrupt.

Loading...

Page Navigation
1 ... 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430