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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
१३ इस दोहे को पढ़कर विहारी का प्रसिद्ध दोहा याद हो आता है, कितना भाव और वर्णन साम्य इनमें है, देखिये--
पटु पाँखै भखु काकरैं सदा परेई संग,
सुखी परेवा जगत में तूही एक विहंग । दोनों ने दोहे जैसे छोटे छन्द में भावसागर भर दिया है; 'गागर में सागर' की कहावत चरितार्थ की है। दोनों ने परेवा पक्षी का प्रेम के आदर्श दम्पति के रूप में उदाहरण दिया है। परेवा (Dove) को लेकर महान रूसी कवि टालस्टाय ने भी अपनी कहानी 'हाई देयर इज इविल इन द वर्ल्ड' (संसार में बुराई क्यों है ?) लिखी है। वैसे तो जैन कवियों पर यह लांछन लगा दिया जाता है कि वे सम्प्रदाय या धर्म प्रचारक मात्र हैं पर यह कथन शत प्रतिशत सत्य नहीं है। अनेक जैन कवि इसके अपवाद हैं और जिनहर्ष उनमें अग्रगण्य हैं। प्रमाणस्वरूप उनके विरह वर्णन की दो पंक्तियाँ देखें ---
जिण दिन साजन वीछड्या, चाल्या सीख करेह,
नयणे पावस ऊलस्यौ झिरमिर नीर झरेह ।' इनकी रचनाओं में बड़ा वैविध्य है । वैराग्य की चर्चा का नमूना
देखिये -
ईधन चंदन काठ करै, सुवृक्ष उपारि धतूर जो बोवै । सोवन थाल भरे रज-रेत, सुधारस तूं करि पाड़हि धोवै
मूढ़ प्रमाद ग्रह्यो जसराज, न धर्म करे नर सो भव खोवै । इसकी तुलना में शृङ्गार रस की ये पंक्तियाँ रखकर देखने पर इनके वर्णन वैविध्य का अनुमान सम्भव होगा। गोरउ सउ गात रसीली सी बात सूहात मदन की छाक छकी है। रूप की आगर प्रेम सुधाकर रामति नागर लोकन की है। नाहर लंक मयंक निसंक, चलइ गति कंकण छयल तकी है। चूंघट ओट में चोट करइ, जसराज के सनमुख आय चुकी है। १. सं० अगर चंद नाहटा -जिनहर्ष ग्रन्थावली प०
(प्र० सार्दूल रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर) २. सं. अगर चंद नाहटा -जिनहर्ष ग्रंथावली, पृ० ४०१
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