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अज्ञेय जीवन-रहस्य 3
साथ कितने साल तक मनोविश्लेषण करवाया है!
कहते हैं, असंख्य! गलती में मत पड़ना। और मनोविश्लेषण का कुल मतलब इतना है कि मनोवैज्ञानिक ___ आम आंख से आदमी चार हजार तारों से ज्यादा तारे नहीं कहता है, लेट जाओ इस कोच पर, और जो भी मन में आए, फ्री | देखता। अच्छी से अच्छी आंख चार हजार तारे देखती है, बस। एसोसिएशन आफ थाट्स, जो भी मन में आए, कहे चले जाओ। | चूंकि आप गिन नहीं पाते, इसलिए सोचते हैं, असंख्य। लेकिन जो भी आए। संगत-असंगत का कोई सवाल नहीं। लोग बड़े हल्के | | दूरदर्शक यंत्र से देखिए, तो तीन अरब तारे अब तक देखे जा चुके होकर लौटते हैं।
हैं। लेकिन वे तीन अरब तारे जगत की सीमा नहीं हैं। जगत उनके एक तो कहने वाले वे लोग हैं, जिन्हें कहना एक बीमारी है। | भी पार, उनके भी पार, उनके भी पार है। अब वैज्ञानिक कहते हैं, उनके भीतर कुछ भरा है, उसे निकालना है। लेकिन उससे दूसरे का | हम कहीं भी तय न कर पाएंगे कि जगत की सीमा है। हित कभी नहीं होता।
अगर इस असीम का पता चले, तो आपको अपना कमरा और कृष्ण कहते हैं, मैं तेरे हित के लिए कहूंगा। कुछ कहने का आपका राजा होना उस कमरे में, कितना मूल्यवान मालूम पड़ेगा? सवाल नहीं है। लेकिन तेरे सुनने की घड़ी आ गई, तेरे सुनने का अगर आपको इस अनंत विस्तार का पता चले, तो पड़ोसी से क्षण आ गया, वह परिपक्व मौका आ गया, जब तेरा हृदय राजी आपकी एक इंच जमीन के लिए जो अदालत में मुकदमा चल रहा है, तो में तुझसे परम सत्य कहूंगा। और यह परम सत्य, इस सूत्र है, वह मुकदमा कितना मूल्यवान मालूम पड़ेगा? उसकी कोई की व्याख्या होगी अंततः, कि जीवन अजन्मा है, अनादि है। रेलिवेंस, उसकी कोई संगति मालूम नहीं पड़ेगी। अस्तित्व का न कोई प्रारंभ है, न कोई अंत। और हम इस अस्तित्व __ अगर आप पीछे लौटकर देखें, तो अरबों-अरबों लोग इस में छोटी लहरों से ज्यादा नहीं। हमारे कृत्य इस परम विस्तार को | | जमीन पर रहे हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि जहां आप बैठे हैं, उस जगह ध्यान में रखकर सोचे जाएं, तो लीला मात्र, खेल मात्र रह जाते हैं। | पर कम से कम दस आदमियों की कब्र बन चुकी है; हर जगह पर। .. अगर इस परम विस्तार को छोड़ दिया जाए, तो हमारे कृत्य बड़ी | जहां आप बैठे हैं, वहां दस मुर्दे गड़े हैं। इतने आदमी हो चुके हैं कि महिमा ले लेते हैं, बड़ी गरिमा ले लेते हैं, बड़े महत्वपूर्ण हो जाते अगर हम पूरी जमीन पर भी गड़ाएं, तो हर इंच पर दस मुर्दे गड़ हैं। और हम सबकी नजर इतनी छोटी है कि इस विस्तार को हम जाएंगे। उनके भी झगड़े थे, उनकी भी अकड़ थी, उनकी भी नहीं देख पाते।
राजनीति थी, उनके भी छोटी-छोटी बातों पर बड़े-बड़े विवाद थे, __ अपने घर में आप बैठे हैं अपनी कुर्सी पर, अपने कमरे के भीतर, | | वे सब खो गए। आज उनका कोई विवाद नहीं है। कल हमारा भी तो आप सम्राट मालूम होते हैं। थोड़ा बाहर आइए; फिर फैले हुए कोई विवाद नहीं होगा। इस विराट आकाश को देखिए, फिर इन चांद-तारों को देखिए, तब __ अगर हम इस सातत्य को, इस विस्तार को अनुभव करें, तो कहां आपको अपना अनुपात अलग मालूम पड़ेगा। तब आपके छोटे-से | टिकेगा पाप? कहां टिकेगा पाप? कहां टिकेगा अहंकार? कहां कमरे में आप जो सम्राट मालूम होते थे, वह अब नहीं मालूम पड़ेंगे। टिकूँगा मैं? वे सब खो जाएंगे। और उनके खो जाने पर व्यक्ति नहीं ___ यह छोटे-छोटे दड़बों में आदमी बंद है, फ्लैट्स में, छोटी-छोटी बचता, परमात्मा ही बचता है। कोठरियों में आदमी बंद है, उसकी वजह से उसकी अकड़ बहुत आज इतना ही। बढ़ गई है। उसे थोड़ा खुले आकाश के नीचे लाना चाहिए, तो उसे लेकिन उठेंगे नहीं। पांच मिनट बैठेंगे। पांच मिनट हमारे पता चले कि अपना अनुपात कितना है!
संन्यासी कीर्तन में लीन होंगे, उनके साथ आप भी लीन हों। विराट आकाश। और जितना आकाश आपको दिखता है, उतना तालियां बजाएं। कीर्तन में भाग लें। कोई भी उठेगा नहीं। यह प्रसाद ही नहीं है. यह तो आपकी आंख की कमजोरी की वजह से इतना समझें, और इसको लेकर जाएं। दिखता है। यह आकाश और भी विराट है। तो एक बड़े दूरदर्शी यंत्र से देखिए। तब आपको दिखाई पड़ेगा कि जितने तारे आपको दिखाई पड़ते हैं, ये तो कुछ भी नहीं हैं। आपने हालांकि सोचा होगा, क्योंकि हमारी गणना कितनी है! आप रात में तारे देखते हैं, तो
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