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25/श्री दान-प्रदीप
मनुष्य अपनी कृत प्रतिज्ञा को भूलकर जीवित रहे-यह जरा भी योग्य नहीं है। मैं अपनी पत्नी को कुछ भी अवगत कराये बिना जाऊँ–यह भी मेरे लिए योग्य नहीं है, क्योंकि विवाह की विधि में मैंने इसका दायाँ हाथ ग्रहण किया है। अतः उसको कहकर जाऊँगा, तो कदाचित् वह उतनी अधीर नहीं बनेगी। अतः यही ठीक रहेगा।"
इस प्रकार विचार करके कुमार ने अपनी प्रतिज्ञा अपनी पत्नी को बतायी। तब उसने कहा-“हे जीवन–नाथ! आपके द्वारा प्राणों का त्याग करना कैसे उचित है? आपके बिना मैं पतिव्रता मरी हुई ही हूं-आप ऐसा मानें। आपके माता-पिता भी आपके मरण-शोक रूपी दावानल में जलकर आपके मार्ग के ही पथिक बनेंगे। अतः अब आप विलम्ब न करें। जल्दी से जल्दी यहां से आगे प्रयाण करें। उस राक्षस को ज्ञात हो, उससे पहले ही हम इस अरण्य को पार कर लेंगे।"
यह सुनकर कुमार ने कहा-'हे प्रिया! मैं सत्यवादी हूं। अतः अपनी प्रतिज्ञा का लोप नहीं कर सकता। महान् पुरुष अपने प्राणान्त तक भी अपनी प्रतिज्ञा का लोप नहीं करते। सत्पुरुष अपने वचनों का पालन करने के लिए अग्नि में प्रवेश करते हैं, वनवास स्वीकार करते हैं, राज्य का त्याग करते हैं, लक्ष्मी का तिरस्कार करते हैं, प्राणों को तृणवत् समझते हैं अर्थात अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करने के लिए वे क्या-क्या नहीं करते? प्रतिज्ञा का पालन करने के लिए हरिश्चन्द्र राजा ने क्या दास बनकर चण्डाल के घर पानी नहीं भरा था? हे देवी! प्रचण्ड भुजबल से युक्त पाण्डवों ने वाणी रूपी बन्धन से बंधकर तेरह वर्ष तक वनवास को भोगा था । उत्तम पुरुष स्वाभाविक रूप से जिन वचनों का उच्चारण करते हैं, वे पत्थर में खुदे हुए अक्षरों की तरह कभी भी अन्यथा नहीं होते। अतः हे देवी! मुझे एक बार तो उस राक्षस के पास अवश्य जाना होगा।"
यह सुनकर कुमार की पत्नी ने कहा-"अगर ऐसा है, तो मैं भी आपके साथ चलूंगी। मेरा जीवन और मरण आपके साथ ही होगा। सम्पत्ति हो या विपत्ति, सती स्त्रियों की गति पति ही है।"
कुमार ने कहा-“मैं तो वचन से बंधा हुआ हूं, अतः राक्षस के पास जा रहा हूं। तुम धैर्य धारण करके यहीं पर ठहरो। हे प्रिये! मेरे जाने के बाद जो भी मुझ-विषयक समाचार तुम्हें मिले, उसके मुताबिक तुम आगे का कार्य करना।"
इस प्रकार प्रिया को समझा-बुझाकर कुमार बिना किसी को बताये चुपचाप राक्षस के भवन में पहुँचा। वहां जाकर उसने कहा-“हे राक्षसेन्द्र! मैंने आपके पास स्वयं को प्रतिज्ञा रूपी रस्सी के द्वारा बांधा था । अतः उसे पूर्ण करने के लिए मैं आपके पास आया हूं | आपकी कृपा से मेरा उस राजकन्या के साथ विवाह हो चुका है। अब आप अपनी इच्छा पूर्ण करें।"