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पाप वासनाओ से मलीन चित्त प्रापो दुःखमय ससार में भ्रमण करता है।
पाऊल ठेवून त्याचा शिष्य सप्रदाय व गहस्थी अवस्थेतील त्याचे पुतणे प्रादि (फुलचद जो पहा: धराणे) माझे प्रेरक-दीक्षा शिक्षा गुरुदेव प० पू० श्री १०८ श्रेयास मागर महाराज जाक लागले तर ह्यात आश्चर्य ते काय? आणि ह्या चरण कमला च्या सानिध्यात मला अज क्षुल्लक पामराला अशा तपस्वी चे स्मृति प्रसगा चा मधुर सुगधा चा अस्वाद घेताना त्याना मार्गा च्या प्राप्ती चो-चारीत्रा ची कर्तृत्वा चो-तपाची श्रद्धाजली देताना
दोन नयना च्या निर्मल जलाने, प्रक्षालीन हो भव्य चरणे। सत् भावाची शुभ सुमने, स्मृती ग्रन्थाने पूजनीय चरणे ।।
तेजस्वी महर्षि चन्द्र सागर महाराज लेखक-विद्वत रत्न, धर्म दिवाकर सुमेरु चन्द्र दिवाकर शास्त्री B. A,LL. B. सिवनी
जिन महर्षि आचार्य शिरोमणि चारित्र चक्रवर्ती १०८ श्री शाती सागर जी महाराज ने अपूर्व व्यक्तित्व, अप्रतिम श्रद्धा तथा श्रीष्ठ तपश्चर्या द्वारा इस कलि काल में दिगम्बर मुनि जीवन को जगत में लोकोत्तर प्रतिष्ठा प्रदान की तथा उस मार्ग को उद्दीपित किया, उनके उज्वल चरित्र सपन्न श्रमण शिष्यो मे महा मुनि १०८ परम पूज्य आचार्य श्री चद्र सागर नहाराज का अत्यन्त गौरवपूर्ण स्थान रहा है । उन्हे दिवगत हुए तीस वर्ष से अधिक समय हो गया फिर भी धार्मिक तथा सयम प्रेमी वर्ग मे उनको पावन स्मृति अभी भी ताजी है। उनकी स्मृति मे एक नथ प्रकाशन का विचार मुझे सूचित किया गया, तथा यह आग्रह किया गया कि मैं उन महर्षि के सम्बन्ध में अपने मनोभाव व्यक्त करू, अत कुछ पक्तिया लिखने के बारे मे प्रयत्न करना कर्तव्य प्रतीत हुआ।
सत्पुरुषो के गौरव-सवर्धन के पावन कार्य में सम्मिलित होना मैं परम भाग्य मानता है । यह मेरा दुर्भाग्य रहा कि मैं उनके निकट सपर्क मे अधिक नहीं आ पाया, अत में विस्तृत लेख बनाने में असमर्थ है । फिर भी गजपथा सिद्ध भूमि मे उनको निकटता से देखने का मुझे सौभाग्य मिला था। यथार्थ मे वे महान उग्र तपस्वी, सत्यवादी तथा आगम प्राण साधु थे। वे आगमोक्त कथन के प्रकाश में अपने विचारों को सुधारने में सदा तत्पर रहा करते थे। जब नक कोई वात शास्त्राधार पूर्वक उनके गले नहीं उतरती थी तब तक बाह्य बल प्रयोग हो हल्ला आदि मचाने पर वे उस विचार को बदलने को तैयार नहीं होते थे । आगम उनका प्राण था।