________________
गुण थालों की संगति से ज्ञान वृद्धिगत होता है ।
चर्चा शतक --श्री द्यानतराय कृत
जय सर्वज्ञ, अलोक लोक एक उड्डुवत देखे । हस्तामल ज्यों, हातलोक ज्यों सरव विशेष ।। छहों द्रव्य गुण, परज कालत्रय, वर्तमान सम।
दर्पण जेम प्रकाश, नाशिमल कर्म महातम ।। परमेष्ठी पांचों विधन हर मंगलकारी लोक में । मन वचन काय, सिर लाय भुव, आनंद सों धो धोक मैं ॥१॥
॥ स्तुति सिद्ध वर्णन ॥ लोक ईश तनु बात शीस, जगदीश विराजै। एक रूप, वसु रूप गूण अनंतातम छाजै ।। अस्ति वस्तु परमेय, अगुरुलघु द्रव्य प्रदेशी।
चेतन अमतिक, आठ गुण अमल सुदेशी ॥ उत्कृष्ट जघन्य अवगाहना, पदमासन खड्गासन लसै। सब ज्ञायक लोक अलोक विधी, नमो सिद्ध भवभय बसै ॥२॥
आचारिज उवझाय साध, तीनों मन ध्याऊं। गुण छत्तीस पचीस बीस अरु आठ मनाऊं ॥ तीन को पद साध, मुगति को मारग साधे ।
भवतन भोग विराग, राग सिव ध्यान अराधै ॥ गुण सागर अविचल मेरु सम, धीरज सों परिषह सहै। मैं नमों पाय जुगलाय मन, मेरो जिव वांछित फल लहै ॥३॥
सम्यग्दर्शन वर्णन तिह-काल, षट द्रव्य, पदार्थ नव, तुम भाषै । सप्त नत्व, पंचास्ति काय षट कायक राखे ।
[१७२]