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प्राणियों के प्राण ही सबसे प्यारी वस्तु है।
समझना चाहिए। दोनों चरणों के बीच ४ भाग अन्तर रखै। खड्गासन प्रतिमा में पद्मासन प्रतिमा की नाप ५४ भाग प्रमाण इस तरह है (चरण चौको के ऊपर से मस्तक के केश स्थान तक), बाम गोडे के बीच से दक्षिण गोडे के बीच तक)। (बाम गोडे के बीच से दक्षिण भुजा के स्कन्ध के बीच तक)। (दक्षिण गोडे के बीच से वांम भुजा के स्कंध के बीच तक)। इस प्रकार ५४ भाग प्रमाण नाप करै। दोनों हाथों की अंगुली और पेडू का अन्तर ४ भाग रखे। कोहनी पास २ भाग का उदर से अंतर रखै। पौछा से कोहनी पर्यन्त यथाशोभित हानि रूप अंतर रखै । नाभी से लिंग ८ भाग नीचा ५ भाग लंबा बरगावै । लिंग के मुख के नीचे से प्रक्षाल के जल का निकास दोनों पैरों के नीचे से चरण चौको के ऊपर कर ॥श्री शुभं ॥
* समाप्त समय सार के अंतिम सवैया
पं० जयचन्द कृत जीव अजीव अनादी संयोग मिल लखिमूढ न आतम पावें ॥
सम्यक् भेद विज्ञान भये बुध भिन्न गहै निज भाव सुदावें ॥ श्री गुरु के उपदेश सुनैरु भलै दिन पाय अग्यान गमावै ॥
ते जगमाँहि महंत कहाय वसे शिव जाय सुखी नित थावें ॥१॥ जीव अनादि अज्ञान वसाय विकार उपाय वर्ण करता सौ।
ताकरि बंधन आन तणूं फल ले सुख दुःख भवाश्रम वासो॥ ज्ञान भये करता न वणे तब बंध न होय खुले परपासो ।
आतममाहि सदा सुविलास कर सिव पाय रहै निति थासो ॥२॥ माधव कारण रूप सवादसुं भेद विचारि गिने दोऊ न्यारे।
पुण्य और पाप शुभाशुभ भावनि बंध भये सुख दुःख करा रे ॥ ज्ञान भये दोऊ एक लखै बुध आश्रय आदि समान विचारे ।
बंध के कारण हैं दोऊ रूप इन्हें तजि श्री जिन मुनि मोक्ष पधारे ॥३॥ योग कषाय मिथ्यातव असंयम आसव द्रव्य ते आगम गाये।
राग विरोध विमोह विभाव अज्ञानमयी यह भावि तजाये ॥ [१७०]