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दूसरे के दोषों को प्रगट न करना उपगृहन है।
अपर्याप्त २ जीव समास होते हैं । तिर्यच गती में १४ जीव समास हैं। वे ऐसे-उक्तं
वादरसूक्ष्मैकेन्द्रिय, द्वित्रिचतुरिन्द्रिया संज्ञिसंज्ञिनश्च ।
पर्याप्तापर्याप्ता एवं ते चतुर्दश
जीवाः ॥१॥
दो-तीन-चार-इन्द्रिय में दो पर्याप्त अपर्याप्त समास हैं-एक-पंच-इन्द्रियों में चार हैं वे ऐसे एकेन्द्रि में सूक्ष्म १ वादर १ पर्याप्त १ अपर्याप्त १ पंचेन्द्रि में संज्ञि १ असंज्ञि १ पर्याप्त १ अपर्याप्त १ है। एकेन्द्रि-पृश्चि १ अप १ तेज १ वायु १ वनस्पति १ पाँचों में चार प्रकार हैं । मार्गणा उक्तंच-गाथा
गई-इंदिये चकाए जोगे वेए कसायणाणे य । . संजमदंसण लेस्साभविया सम्मत्तसण्णिआहारे ॥१॥ दश त्रसकाये संज्ञी सत्यमनआदिषु सप्तयोगेषु ।
द्वीन्द्रियादिपूर्णाः पंचाष्टमे सप्त औराले ॥५॥ भावार्थ-त्रसकाय में दश जीव समास हैं वे ऐसे द्वि-त्रि-चतु-पचेन्द्रि चारों पर्याप्त अपर्याप्त करै ८ पंचेन्द्रि संज्ञि असंज्ञि २ कुल १० । सत्य मनोयोग, असत्य, उभय, अनुभय, सत्य वचन योग, असत्य, उभय, सात योगों में एक संज्ञि तथा एक पर्याप्तक होते हैं । अनुभय वचन योग में-द्वि-त्रि-चतु-पंचेन्द्रि-संजि-पर्याप्त-असंज्ञि ५ है। औदा
रिक शरीर में सात जीव समास हैं-एकेन्द्रि सूक्ष्म वादर पर्याप्त २ विकलत्रय ३
पंचेन्द्रि संज्ञि-असंज्ञि पर्याप्तः-७
मिश्र अपूर्णसप्त एकसंज्ञी विगूर्विकादि चतुषु च ।
कार्मणे अष्टौ स्त्रीपुंसोः पंचाक्षगतचत्वारः ॥६॥ भावार्थ-औदारिक मिश्रकाय योग में एकेन्द्रि से पंचेन्द्रि सं० असं० तक अपर्याप्त
७ केवलिसमुद्धाते संज्ञि पर्याप्ते १ ऐसे आठ हैं। वैक्रियक काय योगात एक संज्ञी पर्याप्त १ वैक्रियिक मिश्रयोगे पंचेन्द्रि संज्ञि अपर्याप्त १ आहारक काय योगे-पंचेन्द्रिसंज्ञि
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