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संसार रोग नाश करने के लिये सम्यग्दर्शन परमौषधि है।
उक्तंच
दंडद्विके औदारिकं कपाट युगले च प्रतरसंवरणे । मिश्रौदारिकं भणितं शेषत्रिके जानीहिकार्मण ॥
॥ इति ज्ञान मार्गरणा ॥ कार्मणद्वि वैक्रियिक मिश्रौदारिकोनाः प्रथमयम युगले । परिहारद्रिके नवकं देशयमे चैव यथाख्याते ॥२७॥
भावार्थ-सामायिक १ च्छेदोस्थापना १ दोनों संयम में - आठ-मन वचन योग ८ औदारिक १ आहारक व मिथ २ दोनों मिले ग्यारह योग हैं, परिहार विशुद्धि १सूक्ष्मसाम्पराय १ दोनों में-आठ मन वचन योग, एक औदारिक काय योग ऐसे नौ होते हैं । अगे
वैक्रियिक द्विकाहरकद्विकोना एकादश असंयमे योगाः । त्रयोदश आहारक द्विकरहिताः चक्षुषि मिश्रोनाः ॥२८॥
भावार्थ-यथाख्यात चारित्र में-मन वचन ८ आठ, औदारिक १ मिश्र १ कार्मण १ ये ग्यारह होते हैं। असंयम में-आहारक २ दोनो छोड़ शेष तेरह हैं ।
॥ इति संयम मार्गणा ॥ द्वादश अचक्षुरवध्योः सर्वे सप्तैव केवलालोके । कृष्णादित्रिके त्रयोदश पंचदश तेज-आदिक चतुष्के ॥२६॥ भावार्थ-चक्षु दर्शन में बारह, वैक्रियक मिश्र १ औदारिक मिश्र १ कार्मण १ ये तीन रहित है । अचक्षु दर्शन में अवधि दर्शन में सर्व पंद्रह योग है। केवल दर्शन मेंज्ञान के अनुसार सात हैं ॥ इति दर्शन मार्गणा ॥ कृष्ण-नोल-कापोत-तीनों लेश्या मेंआहारक दोन खेरिज तेरह होते हैं। पीत-पद्म-शुक्ल में भव्य में-सर्व पंद्रह योग होते हैं।
त्रयोदशाभव्ये सर्वे क्षायिकयुग्मे खलु उपशमे सम्यक्त्वे । सासादन मिथ्यात्वयोः त्रयोदश अत्रिमिश्राहारकर्मणा ॥३०॥ भावार्थ-अभव्य जीव में आहारक दो के सिवाय तेरह योग हैं, ॥ इति लेश्या
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