Book Title: Chandrasagar Smruti Granth
Author(s): Suparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
Publisher: Mishrimal Bakliwal

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Page 344
________________ मोक्षमार्ग बताने के लिए सम्यग्यान दीपक है । भावार्थ-क्षायिक-वेदक दोनों सम्यक्त्व. में-अविरति १२ कषाय २१ अनन्तानुबंध रहित-योग १५ येकंदर ४८ होते हैं। मिश्रसम्यक्त्वे-अविरत १२ कषाय पूर्वोक्ति २१ योग १० मन वचन ८ औदारिक-वैक्रियककाय २ ऐसे ४३ होते हैं। सासादन में-पांच मिथ्यात्व-आहारक दोनों ये सात कम करके शेष ५० होते हैं। मिथ्या सम्यक्त्व में आहारक दो छोड़ सर्व ५७ होते है ॥ इति सम्यक्त्व मार्गणा में आश्रवः ॥ संज्ञि जीव में सर्व ५७ नाना जीव अपेक्षा होते है। कार्मणौदारिक विकासत्यमृषोनयोगमनोहीनाः। पंचचत्वाररिंशदसंज्ञिनि संकलाआहारकेअकार्णमकाः॥६॥ भावार्थ-असंज्ञि जीव में ४५ प्रत्यय होते हैं वे ऐसे-पांच मिथ्यात्व ५ मन रहित ११ अविरति २५ कषाय-कार्मणः औदारिक योग २ असत्य वचन-अनुभय वचन २ ये सर्व ४५ हैं । इति संज्ञि मार्गणा-प्रत्ययाः। आहारक जीव के कार्मण काय योग छोड़ सर्व ५६ होते हैं। त्रिचत्वारिंशदनाहारके कर्मेतरजोगहीनका भवन्ति ॥ तीर्थ प्रभुणा गणिता इति मार्गणाप्रत्यया भणिताः ॥८॥ भावार्थ-अनाहार के जीव में-मिथ्यात्व ५ अविरतः १२ कषाय २५ कार्मण काय योग १ ये सब ४३ प्रत्यय हैं। इस प्रकार तीर्थकर भगवान ने तथा गणधरादि आचार्यों ने वर्णन किया है ॥ इति ॥ अथ चतुर्दश जीव समासेषु सप्तपंचाशत्प्रत्ययाः कथ्यन्तेएकद्वित्रिचतुरक्षेषु च संज्ञिषु भाषिता येते । अष्टात्रिंशदादयः संकला-पंच चत्वारिंशत् काममिश्रोनाः ॥६६॥ सप्तसु पूर्णेषु भवेत् औदारिकं मिश्रकं अपूर्णेषु । एकैकयोगविहीना जीवसमासेषु ते ज्ञयाः ॥७॥ भावार्थ-एकेन्द्रि सूक्ष्म अपर्याप्त के-मिथ्यात्व ५ षटकाय विराधना ६ स्पर्श इन्द्रि [२४०]

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