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शास्त्राभ्यास से मनरूपो बंदर वश हो जाता है।
अविरत १ स्त्री-पुरुष दो वेद छोड़ बाकी २३ कषाय-औदारिफ मिश्र-कार्मण २ योग सब ३७ आश्रव हैं। एकेन्द्रि सूक्ष्म पर्याप्त के-मि० ५ अवि० ७ कषाय २३ औदारिक काय योग १ सर्व ३६ आश्रव हैं। एकेन्द्रि बादर अपर्याप्त के मिश्र ५ अविरत ७ कषाय २३ औदारिक मिश्र १ कार्मण १ ये सब ३७ होते है। एकेन्द्रि बादर पर्याप्त के-मिश्र ५ अविरति ७ कषाय २३ औदारिक १ सर्व ३६ आश्रव है। द्विइन्द्रि अपर्याप्त के-मिश्र ५ षटकाय विराधना स्पर्श रसना अविरती ८ कषाय २३ औदारिक मिश्रफार्मण २ योग सर्व ३८ हैं। द्विइन्द्रि पर्याप्त के-मी० ५ अ०८ क० २३ औ०१ अनुभय भाषा १ ये सर्व ३८ है। त्रिइन्द्रि अपर्याप्त जीव के दो इन्द्रि से एक प्रान अविरति अधिक ३६ है। त्रिइन्द्रि पर्याप्त के दो इन्द्रि पर्याप्त से १ अधिक घ्राण अविरती सर्व ३६ हैं। चौइन्द्रि अपर्याप्त के तीन इन्द्रि अ० एक चक्षु अविरति अधिक सर्व ४० हैं । चौइन्द्रि पर्याप्त के तीन इन्द्रि पर्याप्त से एक चक्षु अविरति अधिक ४० हैं । पंचेन्द्रि असंज्ञि अपर्याप्त के-मिश्र ५ मन रहित अविरति ११ कषाय २५ औदारिक मिश्र १ कार्म १ ये ४३ है। पंचेन्द्रि असंज्ञि पर्याप्त के मिश्र ५ अविरति ११ कषाय २५ औदारिक १ अनुभय वचन १ ये सब ४३ हैं । पंचेन्द्रि संज्ञि अपर्याप्त केमिश्र ५ अविरति ११ कषाय २५ औदारिक मिश्र १ वैक्रियक मिश्र १ कार्म १ सर्व ४४ प्रत्यय है । पंचेन्द्रि संज्ञि पर्याप्ते जीव समासे--मिश्र ५ अविरति १२ कषाय २५ मिश्र कार्मण २ छोड़ १३ योग कुल ५५ आश्रव होते हैं ।
॥इति जीव समास आश्रवः॥ अथ चतुर्दश गुण स्थानेषु-प्रत्यया कथ्यन्तेमिथ्यात्वे चतुः प्रत्ययो वन्धः सासनद्रिके त्रिप्रत्ययः । ते विरतियुता अविरत देश गुणे उपरिमद्धिकं च ॥७१॥
द्वौ ततः पंचसु त्रिषु ज्ञातव्यो योगप्रत्यय एकः । सामान्य प्रत्यया इतिः अष्टानां भवन्ति कर्मणां ॥७२॥ भावार्थ-मिथ्यात्व गुण स्थान में-मिश्र अविरति कषाय योग चारों प्रकार के आश्रव से बन्ध होता है । सासादण-मिश्र गुरण अविरति कषाय योग तीनों प्रकार के
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