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मन रूपी मदोन्नत हाथी के लिये शान हो अंकुश है।
त्रसासंयमाहीना अयमाः सर्वे सप्तत्रिंशत् संयसविहीने । आहारक युगोनाः पंचपंचाशत् सर्वे च चक्षुयुगे ॥६२॥
भावार्थ-देश संयम में मन वचन ८ औदारिक काय १ हस्यादि नो कषाय ६ प्रत्याख्यान ४ संज्वलन ४ त्रस-छोड़-ग्यारह अविरति ११ ये सब ३७ प्रत्यय है। असंयम में-आहारक दोनों छोड़ शेष सर्व ५५ होते हैं। इति संयम मार्गणा में आश्रवः ।। चक्षु-अचक्षु दोनों में नाना जीवों के अपेक्षा ५७ आश्रव.है ।
अवधौ अष्ट चत्वारिंशत् ज्ञान त्रिकोक्ता हि केवलालोके । सप्त गतद्विकाहारकाः पंचपंचाशत् भवन्ति कृष्णत्रिके ॥६॥
भावार्थ-अवधि दर्शन में-अनन्तानुबंधी ४-मिथ्यात्व ५ ये नौ छोड़ शेष ४८ प्रत्यय है। केवल दर्शन में-सत्य मन-अनुभय मन-सत्य वचन-अनुभय वचन-औदारिक १ मिश्र १ कार्मण योग १ ये सात होते है। इति दर्शन मार्गरणा मैं आश्रवः । कृष्णकापोत-नील तीनों अशुभ लेश्या में आहारक दोनों छोड़ शेष पचपन प्रत्यय है।
तेजआदित्रिके भव्ये सर्वे अनाहारकयुग्मका अभव्ये । पंचपंचाशत्ते मिथ्यात्वानोनाः षट्चत्वारिंशत् उपशमे ॥६॥
भावार्थ-पीत-पद्म-शुक्ल तीन लेश्या में तथा भव्य जीव में-सर्व ५७ आश्रव नाना जीव अपेक्षा से होते है । अभव्य जीव में-आहारक दोनों छोड़ शेष पचपन प्रत्यय है । इति लेश्या भव्य मार्गणा में आश्रवः। उपशम सम्यक्त्व में-बारह अविरति १२ कषाय २१ अनन्तानुबंधी रहित-१३ योग-आहारक रो छोड़ ऐसे ४६ होते हैं।
आहारकयुगयुक्ताः क्षायिकद्रिके चतेऽपिअष्टचत्वारिंशत् । मिश्र त्रिचत्वारिंशत् ते त्रिमिश्राहारकद्विकोनाः ॥६५॥ द्वितीये मिथ्यात्वपंचकोनाः पंचाशत् मिथ्यात्वे च भवन्ति । पंचपंचाशत् आहरकयुगवियुक्ताःप्रत्ययाः सकलाः संक्षिनि ॥६६॥
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