Book Title: Chandrasagar Smruti Granth
Author(s): Suparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
Publisher: Mishrimal Bakliwal

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Page 366
________________ बोनों चारित्र की प्राप्ति से मुक्ति का लाभ होता है। विद्य तचर ने बहु दुख पायो, तौ भी धीर न त्यागी। शुभ भावन सों प्राण तजे निज, धन्य और बड़भागी ॥ यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, आराधन चितधारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव भारी ॥४२॥ पुत्र चिलाती नामा मुनि को, बैरी ने तन घातो। मोटे-मोटे कीट पड़े तन, तापर निज गुण रातो॥ यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव भारी ॥४३॥ दण्डक नामा मुनि की देही, बाणन कर अरि भेदी। तापर नेक डिगे नहिं वे मुनि, कर्म महा रिपु छेदी ॥ यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव भारी ॥४४॥ अभिनंदन मुनि आदि पाँचस, घानी पेलि जु मारे । तो भी श्री मुनि समता धारी, पूरव कर्म विचारे ।। यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, आराधन चित धारी। __ तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव भारी ॥४५॥ चाणक मुनि गौ घर के मांही, मूंद अगिनि परिजाल्यो । श्री गुरु उर समभाव धार के, अपनो रूप सम्हाल्यो॥ यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, आराधन चित धारी। तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव भारी ॥४६॥ सात शतक मुनिवर दुख पायो, हथिनापुर में जानो। बलि ब्राह्मण कृत घोर उपद्रव, सो मनिवर नहिं मानो ॥ यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, आराधन चित धारी। । ___ तो तुमरे जिय कौन दुःख है ? मृत्यु महोत्सव भारी ॥४७॥ लोहमयी आभूषण गढके, ताते कर पहराये। ___ पांचों पाण्डव मुनि के तन में, तो भी नाहिं चिगाये ।। [२६]

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