Book Title: Chandrasagar Smruti Granth
Author(s): Suparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
Publisher: Mishrimal Bakliwal

View full book text
Previous | Next

Page 368
________________ समस्त गुणो को नाशक स्त्रियाभिलाषा है। w ww w समाधि मरण ? (कवि द्यानतराय कृत) गौतम स्वामी बन्दों नानी मरण समाधि भला है । मैं कब पाऊं निश दिन ध्याऊं गाऊं वचन कला है । देव धरम गुरु प्रीति महा दृढ़ सप्त व्यसन नहीं जाने । त्यागि बाईस अभक्ष संयमी बारह व्रत नित ठाने ॥१॥ चवकी उखरी चूलि बुहारी पानी त्रस न विराधे । बनिज करै पर-द्रव्य हरै नहि, छहों करम इमि साधै । पूजा शास्त्र गुरुन की सेवा, संयम तप चहुं दानी । पर उपकारी अल्प अहारी, सामायिक विधि ज्ञानो ॥२॥ जाप जपै तिहं योग धरै दृढ़ तन की ममता टार। अन्त समय वैराग्य सम्हारै ध्यान समाधि विचार । आग लगै अरु नाव डुवै जब धर्म विधन जब आवै । चार प्रकार आहार त्यागि के मंत्र सु मनमें ध्यावै ॥३॥ रोग असाध्य जहाँ बहु देखे कारण और निहारे । बात बड़ी है जो बनि आवै भार भवन को डार ॥ जो न बने तो घर में रह करि सबसों होय निराला। मात पिता सुत त्रिय को सोंपै निज परिग्रह अहि काला ॥४॥ कछु चैत्यालय कछु श्रावक जन कछ दुखिया धन देई । क्षमा क्षमा सबही सों कहिके मनकी शल्य हनेई ॥ शत्रुन सों मिल निजकर जोरै मैं बहु करी है बुराई । तुमसे प्रीतम को दुख दीने ते सब बकसो भाई ॥५॥ [२६४]

Loading...

Page Navigation
1 ... 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381