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सम्पग्दर्शन रूपी पवन से प्रेरित सम्यक् ज्ञान रूपी अग्नि पाप ईधन को जला देती है।
आश्रव हैं। अविरति-देशविरति-दो गुण स्थान में-अविरति कषाय-योग-तीनों आश्रय हैं। प्रमत्तादि सूक्षम सांम्पराय तक पांच गुण स्थानों में कषाय योग दो आश्रव हैं। ग्यारह-बारह-तेरहवे-गुणस्थान में-१ योगाश्रव है ।
आगे विशेष वर्णन करते हैप्रथमगुणेपंचपंचाशत् द्वितीये पंचाशत् च कार्मणानोनाः। मिश्रौदारिकवैकियिक मिश्रोनाः त्रिचत्वारिंशन्मिथ ॥७३॥
भावार्थ-पहिले गुण स्थान में-आहारक दोनों छोड़ शेष ५५ आश्रव है । सासावन में-पांच मिथ्यात्व रहित ५० आश्रव है । मिश्र में--पचास में-कार्मण १ अनतानु ४ औदारिक मिश्र १ वैक्रियक मिश्र १ ऐसे ज्यादा घटा देने से-४३ आभव हैं।
भवन्ति षट्चत्वारिंशत् खलु अयते कार्मणमिश्रद्विकयुक्ताः। द्वितीय कषायनसायम द्विमिश्रवैक्रियिक कार्मणोनाः ॥७॥
भावार्थ-चतुर्थ गुण स्थानों में तीसरे के ४३ और कार्मण १ औदारिक मिश्र १ वैऋयिक मिश्र १ तीन लेकर ४६ आश्रव है। पांचवें में ३७ प्रत्यय है वे--कषाय १७ अविरति ११ योग ६ सर्व ३७ हैं।
सप्तत्रिंशद्देशे तथा चतुर्विंशति प्रत्ययाः प्रमत्ते च ॥
आहारकद्विको एकादशविरतिचतुः प्रत्यन्ययूनाः ॥७॥ भावार्थ-प्रमत्त में-कषाय स० ४ नो कषाय ६ मन वचन ८ औदारिक १ आहारक २ ये सर्व २४ हैं।
आहारकद्विकोना द्विषु द्वाविंशतिः हास्यषटकेन षंढस्त्री। पुंक्रोधादिविहीनाः क्रमेण नवमं दशमं जानीहि ॥७६॥ भावार्थ-अप्रमत्त-अपूर्व करण इन दो गुण स्थानों में-संज्वलन ४ नो कषाय ६ मन बचन योग ८ औदारिक १ ये सर्व २२ हैं। अनिवृतिकरण में-संज्वलन ४ वेद [२४२]