Book Title: Chandrasagar Smruti Granth
Author(s): Suparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
Publisher: Mishrimal Bakliwal

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Page 350
________________ मानव जन्म का सार संयम है। WWWWWW उपमामान २ के ८ भेद है १. पल्य - ३ भेद हैं - (१ व्यवहारपल्य २ उद्धारपल्य ३ अद्धापल्य) : १० कोx ___ कोडिसे = (सागर) २. सागर - ३ भेद हैं- (१ व्यवहार' सागर २ उद्धारसागर ३ अद्धामागर) ३. सूच्यंगुल-का वर्ग प्रतर ४. प्रतरांगुल ५. घनांगुल (सूच्यकाघन) का विरलन करगुण = ६. जगच्छणो का सातवां भाग राजू = का वर्ग 3 ७. जगत्प्रतर ८. लोक (जगच्छ णी का घन) परमाणु - अनंत का-स्कंध (अवसन्नासन्न ८ का = सन्नासन्न ८ का = तृटरेणु कासरेण ८ का : रथरेणु ८ का : उ० भो० वा०८का -मं० भो०वा. ८ का = ज० भो० वा० ८ का = क० भू-वालग्न ८ को = लीख ८ को = सरसू ८ का - जौ ८ का = अंगुल (उत्सेधांगुल : शरीर नगर मन्दिर) से x ५०० का प्रमाणांगुल (से-महापर्वत-नदी, द्वोप, समुद्र)-भरत ऐरावत के मनुष्यों के अपने काल में : आत्मांगुल (झारी कलश धनुषादि) ६ अंगुल का = पाद २ का = विलस्त २ का = हाथ ४ का = धनुष २००० का = कोश ४ का = योजन ५००का = महायोजन १ का-खोल-तथा १ व्यास का खंडागोल = भो० केसान ४५ अंक प्रमाण को १०० वर्ष से १ निकाल कर पूर्ण करणे का काल को = व्यवहारपल्य काल के असंख्यात कोटी वर्ष के समय से गुणेउद्धारपल्य (के समयों को २५ को० को० गुणे - द्वीप समुद्र संख्या) को असंख्यात वर्ष के समय से गुणे = अद्धापल्य के = अर्द्धच्छेद विरलन करगुरणे %D सूच्यंगुल का वर्ग प्रतर । [२४६)

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