Book Title: Chandrasagar Smruti Granth
Author(s): Suparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
Publisher: Mishrimal Bakliwal

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Page 349
________________ जिनवाणी के अभ्यास से चारित्र को शहि होती है। गणित-ज्योतिष (गणित विषय संज्ञादि प्रकार) संख्यामान १ के २१ भेद है। जघन्य १ मध्यम २ १. संख्यात उत्कृष्ट ३ س س له २. परितासंख्यात३. युक्तासंख्यात४. असंख्यातासंख्यात५. परीतान्त६. युक्तानन्त७. अनंताननंत २ سه سه س (अक्षय अनंत) ن ये गणतिसरसोसे ४६ अंक प्रमाण विरलन कर गुणे परितऽसंख्या। भावार्थ:-जहां द्रव्य का परिमाण कहे वहाँ पदार्थ । क्षेत्रका प्रमाण कहे वहां उतने प्रदेश । जहाँकाल का परिमारण कहे वहां समय । जहां भाव का प्रमाण कहे वहाँ उतने अविभाग-प्रतिच्छेद जानने चाहिये ये उपमा मान से जाने जाते हैं। अभव्य जीवरासी-जघन्ययुक्तानन्त समान है ।। ज० युक्तऽसंख्य समय का = आवली संख्यातका = मुहर्त३०का = रात्रदिन ३० का= मास २ का: ऋतु ३ का = अपन २ का १ वर्ष [२४५]

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