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जिनवाणी के अभ्यास से आत्म हित का ज्ञान होता है। भावार्थ-कुमति ज्ञान में-कुथुत ज्ञान में-आहारक दो छोड़ कर शेष पचपन आश्रव होते हैं । कुअवधि ज्ञान में आहारक दो-औदारिक मिश्र-वैक्रियक मिश्र-कार्मण ये पांच छोड़ शेष बावन आश्रव होते हैं।
ज्ञानत्रिके अष्टचत्वारिंशत् अषण्ढस्त्रीनोकषाया मनः पर्यये । विंशतिः चतुः संज्वलना नवादियोगा सप्तान्तिमे ॥५॥
भावार्थ-सुमति-सुश्रुत-अवधि ज्ञान में-मिथ्यात्व पांच-अनंतानुबंधी चार-ये नौ कम होके शेष ४८ अड़तालीस आश्रव होते हैं । मनः पर्यय ज्ञान में-पु. वेद छह नो कराय-संज्वलन ४ आठ मन वचन योम-औदारिक-कुल बीस आश्रव हैं। केवल ज्ञान में सात-सत्य-अनुभय-मन २ वचन २ औदारिक १ मिश्र १ कार्मण १ ये सात आश्रय हैं।
॥ इति ज्ञान मार्गणाश्रवः ।। वैगृर्विकद्विकौदारिकमिश कार्मणोना एकादशयोगाः।
संज्वलननोकषायाः चतुर्विंशतिः प्रथमयमयुग्मे ॥५६॥ भावार्थ-सामायिक-च्छेदोपस्थापन संयममे मन वचन योग आठ औदारिक १ आहारक २ संज्वलन ४ हास्यादि नो कषाय ६-येकंदर २४ होते हैं।
परिहारे आहारकद्विकरहितास्ते भवन्ति द्वाविंशतिः ।
संज्वलनलोभ आदिमनवयोगा दश भवन्ति सूक्ष्मे च ॥६॥ भावार्थ-परिहार विशुद्धि संयम में-आठ मन वचन योग-औदारिक काय १ संज्वलन कषाय ४ नो कषाय ६ ये वाईस आश्रव हैं । सूक्ष्म साम्पराय में-मन वचन ८ औदारिक १ संज्वलन लोभ १ ये दश प्रत्यय हैं।
औदारिकमिश्रकार्मणसंयुता लोभहीना यथाख्याते । नवयोगा नोकषाया अष्टान्तकषाया देशयमे ॥६१॥
भावार्थ-यथाख्यात समय में अष्ट मन वचन योग ८ औदारिक १ मिश्र १ कार्मण १ ये ग्यारह होते हैं। [२३८