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पापाधव को रोकने के लिये सम्यग्दर्शन पहरेदार है।
अनुभय बचन १ सत्य मन योग १ अनुभयमन १ चारों योगों में बारह उपयोग होते हैं।
दशकेवलद्विकं वर्जयित्वा योग चतुष्के द्वादश औदारिके। केवलद्विक मनापर्ययहीना नव भवन्ति वैक्रियिके ॥३४॥
भावार्थ-असत्य मन योग में १ उभयमन योग में १ असत्य वचन योग १ उभय वचन योग में १ चारों में केवल ज्ञान १ दर्शन १ दो रहित दश उपयोग होते है ।
औदारिक काय योग मे बारह है, वैक्रियिककाय योग में केवल ज्ञान १ दर्शन.१ मनपर्यय ज्ञान १ ये तीन रहित ६ नौ होते हैं।
चक्षुर्विभंगोनाः सप्तमिश्र आहारकयुग्मे प्रथमं ।
दर्शनत्रिकांज्ञानत्रिक कार्मणे औदारिक मिश्र च ॥३५॥ भावार्थ-वैक्रियिक मिश्रकाय योग में-कुमति-कुश्रुत-सुमति-श्रुत-सुअवधि ज्ञान, पाँच अचक्षुदर्शन-अवधि दर्शन २ मिल सात होते है, आहारक-मिश्र-दो में-सुमति, श्रुति, अवधि, चक्षु-अचक्षु-अवधि दर्शन-ये छह उपयोग होते हैं ।
विभंगचक्षुर्दर्शन मनः पर्ययहीना नव वधू पंडयोः ।
मनः केवलद्विकहीना नव दश पुसि कषायेषु ॥३६॥ भावार्थ-कार्माणाकाययोगे-औदारिक मिश्रकाय योग में-विभंग ज्ञान, चक्षुदर्शन मनः पर्यय ज्ञान रहित शेष नौ उपयोग होते हैं ॥ इति योग मार्गणा ॥ स्त्री वेदनपुंसक वेद में-मनः पर्यय ज्ञान-केवल ज्ञान-केवल दर्शन ये तीन छोड़ शेष नौ होते हैं। पुरुष वेद में केवल ज्ञान, केवल दर्शन दो सिवाय दश होते हैं ।। इति वेद मार्गणा॥ क्रोध मान माया लोभ में केवल ज्ञान दर्शन दो विना दस होते है ॥ इति कषाय मार्गणा॥
अज्ञानत्रिके तान्येव त्रीणि चक्षुर्युग्मं पंच सप्त चतुषु । चत्वारि त्रीणि ज्ञानानि दर्शनानि पंचमज्ञानेऽन्तिमौ द्वौ ॥३७॥ भावार्थ-तीनों कुज्ञानों में-कुमति-कुश्रुति-विभंग ज्ञान-चक्षु अचक्षु दर्शन ये पाँच
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