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सम्यग्दर्शन संसार समुद्र से पार करने के लिए निच्छिद्र पोत है।
अपर्याप्त में-औ०-मिश्र १ चौ इन्द्रि पर्याप्त में-औदारिक काय १ अनुभय वचन १ ये दो हैं । पंचेन्द्रि असंज्ञि अपर्याप्त में-औ०-मिश्र १ पंचे-असंज्ञि पर्याप्त में-औदारिक काय १ अनुभय वचन १ ये दो होते हैं। पंचेन्द्रि संज्ञि अपर्याप्त में-औदारिक मिश्र १ पंचेन्द्रि संज्ञि पर्याप्त में-आठौ मन, वचन, योग, तथा औदारिक काय १ वैक्रियक काय १ आहारक काय १ आहारक मिश्र १ ये बारह होते हैं। कार्मारण काय योग अन्य भव में गमन के समय विग्रह गती में होता है । सातो जीव समास में पर्याप्त अपर्याप्त वर्णन
॥ इति योग वर्णनः ॥ अथ चतुर्दश जीव समासे उपयोगः ।।। कुमतिद्विको अचक्षुः त्रयः दशसु द्विके चत्वारो भवन्ति । चक्षुयुताः संज्ञयपर्याप्ते पर्याप्तेसप्तदश जीवेषु उपयोगाः ॥१५॥
भावार्थ-एकेन्द्रि सूक्ष्म अपर्याप्त १ पर्याप्त १ ए० बादर अपर्याप्त १ पर्याप्त १ दोइन्द्रि अपर्याप्त १ पर्याप्त १ त्री इन्द्रि अपर्याप्त १ पर्याप्त १ चौइन्द्रि अपर्याप्त १ पंचेन्द्रि असंज्ञि अपर्याप्त १ इन दस जीवों में-तीन उपयोग हैं वे यह-कुमति-कुश्रुतिअचक्षु । चार इन्द्रि पर्याप्त १ पंचेन्द्रि असंज्ञि पर्याप्त १ इन दोनों में-कुमति-कुश्रुतिअचा-चक्षु-चार उपयोग हैं। पंचेन्द्रि संज्ञि अपर्याप्त में सातवें यह=कुमति १ कुश्रुत १ सुमति १ श्रुत १ अवधिज्ञान १ चक्षु १ अवधि दर्शन १ ऐसे है। पंचेन्द्रि संज्ञि पर्याप्त में दश-केवल ज्ञान दर्शन छोड़ के शेष। जीव समास में यथा योग्य बारह उपयोग वर्णन पूर्ण ।
॥ चौदह गुण स्थान योग-वर्णन ॥ मिथ्यात्वद्विके अयते तथा त्रयोदश मिश्रेप्रमत्तकेयोगाः। दशैकादश सप्तसु नव सप्त सयोगे अयोगिनि च ॥४६॥
भावार्थ-मिथ्यात्व-सासादन-अविरत-तीनों में तेरह योग आहारक दोनों छोड़ कर होते हैं। तीसरे मिश्र में-आठ मन वचन योग औदारिक काय १ वैक्रियक काय [२३४]