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बारित रूपी दु:स को नाश करने के लिये सम्यग्दर्शन महानिधि है। मार्गणा-भव्य मार्गरणा ॥ क्षायिक-वेदक सम्यक्त्व दोनों में पंद्रह योग हैं, उपशममिथ्यात्व-सासादन में आहारक दोनों छोड़ तेरह योग हैं।
मिश्र दश सज्ञिनि सर्वे चत्वारोऽसंज्ञिनियोगाः।
गतकार्माणा आहारके अनाहारके कार्मण एकः ॥३१॥ भावार्थ-मिश्र सम्यक्त्व में दस योग हैं-आठ मन वचन योग, औदारिक १ वैक्रियिककाय योग ये है ॥ इति सम्यक्त्व मार्गणा ॥ संज्ञी जीव में सर्व योग होते हैं, असंज्ञि में औदारिक १ मिश्र १ कार्मण १ अनुभय वचन योग १ ये चार हैं ॥ इति • संज्ञि मार्गणा ॥ आहारक जीव के कारण छोड़ चौदह योग है, अनाहारक में विग्रह गति में एक कार्मणकाय योग होता है ॥ इति आहारक मार्गणा ।।
॥ इति मार्गणासु–पचदशयोगाः समाप्ताः ।। अथ चतुर्दशमार्गणा में द्वादग उपयोग:नव नव द्वादश नव गति चतुष्के त्रय एक द्वित्र्यक्षे ।
चतुरक्षेउपयोगाश्चत्वारो द्वादश भवन्ति पंचाचे ॥३२॥ भावार्थ-नरक गती में ६ नौ उपयोग कुज्ञान ३ सुज्ञान ३ चक्षु-अचक्षु-अवधि-३ दर्शन होते हैं, तिर्यच गती में इसी प्रकार ६ है, मनुष्य गती में पूर्वोक्त ६ तथा-मनपर्यय ज्ञान १ केवल ज्ञान १ केवल दर्शन १ कुल बारह उपयोग होते हैं। देव गती में नरक मति अनुसार ६ हैं ॥ इति गति मार्गणा ॥ एकेन्द्रि, द्वइन्द्र, तीन इन्द्रो मेंकुमति १ कुश्रुत १ अचक्षु दर्शन १ ये तीन हैं । चतुः इन्द्रि जीव में-कुमति-कुश्रुत ज्ञान २ अचा-चक्षु दर्शन २ मिल चार होते हैं। पंचेन्द्रि मनुष्य अपेक्षा बारह होते हैं ।। इति इन्द्रिय मार्गणा ॥
कुमतिः कुश्रुतं अचक्षुः त्रयोऽपि भ्वप्तेजो वायुवनस्पतिषु । द्वादश त्रसेषु मनोवचनसत्यानुभयेषु द्वादशापि ॥३३॥
भावार्थ-स्थावर पंचकायों में प्रत्येकको-कुमति १ कुश्रुत १ अचक्षु दर्शन १ तीन हैं। त्रसकाय में बारह उपयोग होते हैं ॥ इति काय मार्गणा ॥ सत्य वचन योग १
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