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हेय उपादेय का विचार करना अमूढ दृष्टि अंग है।
पर्याप्त १ आहारक मिश्र काय योग में-पंचेन्द्रि संज्ञि अपर्याप्त १ जीव समास हैं ।
औदारिक मिश्र काय योग में जो आठ होते है वे ही-कार्माण काय योग में आठ ८ जोव समास हैं। पुरुष वेद में-तथा स्त्री वेद मे-चार-चार-पंचेन्द्रि संज्ञि पर्याप्त १ अपर्याप्त १ असंज्ञि पर्याप्त १ असंज्ञि अपर्याप्त १ऐसे है।
पंढे क्रोधे माने मायालोभयोः च कुमति कुश्रुतयोः च । चतुर्दश एकोविभंगे मति श्रुतावधिषु संज्ञिद्विकं ॥७॥ भावार्थ-नपुंसक वेद मे चौवह जीव समास हैं । क्रोध में, मान में, माया में, लोभ में चौदह जीव समास हैं । कुमति-कुश्रुत में चौदह जीव समास है । कुअवधि में-विभंग में-एकः पंचेन्द्रिय संज्ञि पर्याप्तक । सुमति-श्रुतिः अवधिज्ञान मे पंचेन्द्रि सज्ञि पर्याप्त १ अपर्याप्त १ ऐसे दो जीव समास होते है।
मनः केवलयोः संज्ञी पूर्णः सामायिकादिषट्सु तथा चः। चतुर्दश असंयमे पुनः लोचनावलोकने षट्कम् ॥८॥
भावार्थ-मनपर्यय केवलज्ञान में-पंचेन्द्रि संज्ञि पर्याप्त १ एक-एक जीव समास है। देश संयमे,-सामायिक-च्छेदोपस्थापना-परिहारविशुद्धि-सूक्ष्मसाम्पराय-पथाख्यात पटसंयम में प्रत्येकी-संक्षिपर्याप्त एक । असंयम सातवे में चौदा जीव समास होते हैं। चक्षुर्दर्शने षट्कं-चतुइन्द्रियपर्याप्त १ अपर्याप्त १=पंचेन्द्रिय संक्षिपर्याप्त १ अपर्याप्त १=पंचेन्द्रि असंज्ञि पर्याप्त १ अपर्याप्त १=ऐसे छह जीव समास हैं।
चतुर्दश अचक्षुरालोके द्वौ एकोऽवधिकेवलालोके। कृष्णादित्रिके चतुर्दश तेजआदिषु संज्ञिद्रिकं च ॥६॥ भावार्थ-अचक्षु दर्शने चौदा जीव समास हैं। अवधि दर्शन में-पंचेन्द्रि संज्ञि पर्याप्त १ अपर्याप्त १-दो है। केवल दर्शन में-पंचेन्द्रिसंज्ञि पर्याप्त १ समास है। कृष्ण-नील-कपोत-तीन अशुभ लेश्या में-चौदा जीव समास हैं। पीत-पद्मशुक्ल तीन शुभ लेश्या में प्रत्येकी-पंचेन्द्रिसंज्ञि पर्याप्त १ अपर्याप्त १ दो हैं ।
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