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जीप तत्व का भद्धान करना सम्पग्दर्शन है।
भेदज्ञान विशेष संहतमनो वृत्तिः समाधिपरो। जायेताद्भुत धाम धन्याशमिनां केषांचिद त्राचलः ॥ धन मूर्ति न पतत्यपि त्रिभुवनेवह्निः प्रदीप्ते पिवा । येषां नोविकृतिर्मनागपि भवेत्प्राणेषु नश्यत्स्वपि ॥७॥
अंतस्त त्वमुपाधिज्जित महंत्याहार वाचापरं । ज्योतिर्यैः कलितसृतंच यतिभिस्ते संतुनः शांतयो।। येषांतत्सदनं तदेवशयन तत्संपदं सत्सुखं ।
तवृत्तिस्तदपि प्रियं स्तदखिलं श्रेष्टार्थ संसाधनं ॥८॥ पापारि क्षयकारि दातृ नृपति स्वर्गापवर्गश्रियं । श्रीमत्पंकज नंदिभि विरचितं चिच्चेतना नंदिभिः ।। भक्त्यायो यति भावादाष्टकमिदं भव्यास्त्रि संध्यापठे। कि कि सिध्यति वांछितन भुवने तस्यात्रपुण्यात्मनः ॥६॥
॥ इति यति भावनाष्टक समाप्तमिति ॥
॥ॐ नमो जिनाय ॥
- अहिंसा * तीन योग औ' तीन करण से, त्रस जीवों का वध तजना।
- कहा अहिसाणुव्रत जाता, इसको नित पालन करना ।। 99 इसी अहिसाणुव्रत के है, कहलाते पञ्चातीचार ।
छेदन भेदन भोज्यनिवारण, पीड़न बहुत लादना भार ॥ 0
इसी अणुव्रत के पालन से, जाति पांति का था चॉडाल। * तो भी सब प्रकार सुख पाया, कीर्तिमान् होकर यमपाल ॥
नहीं पालने से इस व्रत के, हिसारत हो सेठानी। HD हुई धनश्री ऐसी जिसकी, दुर्गति नहिं जाती जानी ॥ Sha 鄉灣鄉霧灣聽聽聽聽聽聽
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