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आत्मध्यान पोग से मोहम्पी गम का नाम दिया जाता है।
वर्णादि चार, सोलनाहि, देहादीक पांच, दसनाहि मिथ्यात एक दोय बंधनाही है। सोले दस दोय बीना बंध एक रात बीस मिथ्या उदं तीन दोय बड़े उदं याही है । उदै औ उदीरना एक शत बाईस कि आठ ताल विशेष सत्ता नाना जाव ठाही है। मिथ्या गुण सो छियाल काहु सत सत्ताईस पांचो तोर भंगि सौ असंगि आपमाही है ॥६५
बध के १० प्रकार जीव कर्म मिलि बंध, देय रस ताम, उदै मनि । उदोरणा उपाय, रहे जबलौ सत्तागिणी ॥ उत्कर्षण तिथि बढ़े, घटै अपकर्षण कहियत । संक्रमण परूपण उदीरन विन उपशम मत ॥ संक्रमण उदीरण विन निधत, घटि बधि उदीरण संक्रमन । चह विना निः काचित बंधदस, भिन्न आप पर जानि मन ॥६६॥ आउ अंस पंससि इकसठि-इकइससे सित्यासी जानि । सात शतक उनतीस दोयसै तेतालिस इक्यासि मानि ।। सताईस और नौ, तोन-एक आठवा भेद बखान । नोमि अंतकाल में बांध अगली गति को आठ निदान ॥६७॥
पच परावर्तन भाव परावर्तन अनंतु ते कर जीव एक भावसी अनंत भवके परावर्त है। एक भौति अनंत काल परावर्त कर फालते अनंत खेत परावर्त कर्त है ।। एमततं अनंत पुग्गल परावर्तन पंच फेरा वीर्ष आप मिथ्यावस वर्ते है । सातको विनाश जोन सम्यक प्रकाशतेइ दर्प खेत काल भव भावते निकर्त है ॥६८। भाव परावर्तन अनंत भाग भव काल, भव परावर्तन अनंत भाग काल है। कालपरावर्तन अनंत भाग क्षेत्र कहो, खेतको अनंत भाग पुगल विशाल है ।। ताको आधो नाम अर्थ पुग्गल परावर्तन, फिरनो रह्यो है योहि नानी भाल है। ताहि समं सम्यक उपजवे को जोग भयो, और कहां सम्यकत लरकाको स्याल है ॥६६॥
कंचन मान वर्णन नरक पशुगति, आनुपूरवि प्रकृति चार पंचेंद्रि बीनाचार, आताप उद्योत है। माघारण मृक्षम, पावर प्रकृति, तेरे नर आव बोना तीन मोलि सोलह होत है ।।