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कामवासना नरक कुण्ड में प्रवेश करने के लिये प्रतोली है।
अनेकात है और अनेकांत का ग्राहक या प्रतिपादक स्याद्वाद है। इसलिये स्याद्वाद को जानने के लिए नय की ही शरण लेनी पड़ता है । यद्यपि नय वस्तु के एक अश को ग्रहण करता है इसलिये एकात है परन्तु वह दूसरे नय को सापेक्षता रखता है यदि दूसरे नय को अपेक्षा न रखे तो मिथ्या हो जाता है।
"अर्थस्यानेक रूपस्य धीः प्रमाणं तदंशधीः ।
नयो धर्मान्तरापेक्षी दुर्नयस्तन्निराकृति.॥" अनेक धर्मात्मक अर्थ के ज्ञान को प्रमाण कहते है। धर्मान्तर सापेक्ष एक धर्म के ज्ञान को नय कहते है । तथा इतर धर्म निरपेक्ष एक ही धर्म का ग्रहण करने वाले ज्ञान का दुर्नय कहते है। विरोधी प्रतीत होने वाले इतर धर्म का निराकरण करने का नाम निरपेक्षता है और वस्तु के विचार के समय विरोधी प्रतीत होने वाले धर्म को अपेक्षा न होने से उसकी उपेक्षा करने का नाम सापेक्षता है निरपेक्ष नय मिथ्या होते है और सापेक्ष नय सम्यक् होते है क्योंकि वही कार्यकारी होते है । स्वामी समन्तभद्र ने कहा है
"निरपेक्षा नया मिथ्या सापेक्षा वस्तु तेर्थ कृत" इसलिये जिनेन्द्र कथित नय के द्वारा एकात का निरास होता है। जैन धर्म सम्यक एकात का विरोधी नहीं है मिथ्या एकात का विरोधी है। क्यो कि नय का ज्ञाता यह जानता है कि जो नय जिस धर्म का वर्णन करता है वह उतने ही अश में सत्य है, सर्वा श मे सत्य नही है। दूसरा ज्ञाता उसी वस्तु को अपने अभिप्राय के अनुसार भिन्न रूप से वर्णन करता है उनके पारस्परिक विरोध को नय दृष्टि के द्वारा ही दूर किया जा सकता है । अतः वस्तु के यथार्थ स्वरूप को समझाने वाला नय ही है नयाश्रय के बिना वस्तु का स्वरूप नही जाना जा सकता है। ____ यदि आकारादि अक्षर नही हो तो शास्त्रादि की रचना और लेखन सभव नही। सम्यक्त्व न हो तो तपस्वी का तप समीचीन नहीं होता, पारा नामक धातु नही हो तो अन्य धातुओं की शुद्धि नही होती उसी प्रकार नय विवक्षा न हो तो वस्तु की सिद्धि नही होती । लेखन का मूल, अक्षर है-अनेकात का मूल नय है।
प्रमाण वस्तु के पूर्ण रूप को ग्रहण करता है, अंश विभाजन करने की प्रवृति इसको नही है। अत: प्रमाण नय नहीं है किन्तु प्रमाण से जानी हुई वस्तु के एक देश में वस्तुत्व की विवक्षा का नाम नय है।
द्रव्यार्थिक और पर्यायाथिक यह नय के दो मूल भेद है । अत. वस्तु द्रव्य पर्यायात्मक या सामान्य विशेषात्मक होती है। वस्तु के द्रव्याश या सामान्य रूप का ग्राही द्रव्याथिक नय है और पर्यायाश या विशेषात्मक रूप का ग्राही पर्यायाथिक नय है ।
वस्तु द्रव्य पर्यायात्मक या सामान्य विशेषात्मक है। द्रव्य और पर्याय अथवा सामान्य • और विशेष को देखने वाली दो आखे है-द्रव्यार्थिक और पर्यायाथिक । जिस समय पर्यायायिक दृष्टिको बन्द करके केवल द्रव्यार्थिक दृष्टि से देखते है तो नारक तिर्यच देव मानव सिद्धत्व पर्याय
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