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।। अपने हित की बात को नहीं सुनने वाला बहरा है। ,
नाशाग्रनिहिताशाता प्रसन्ना निर्विकारिका ॥.
वीतरागस्य मध्यस्था कर्तव्या चोत्तमातथा ॥७६।। अर्थ-नासिका की अणीपर दृष्टि पड़ती शांत प्रसन्न निर्विकार मध्यस्थ ऐसी उत्तम । 'प्रतिमा बनावै ॥
अर्थ नाशं विरोधं चतिर्यग्दृष्टिर्भयं तथा ।। .
अधस्तात्पुत्र नाशं च भार्यामरण मूर्द्धगा ।।८।। अर्थ-जोतिरछो दृष्टि होय तो अर्थ का नाश विरोध कर नीचि दृष्टि रहै तो पुत्र का - नाश होय ऊंची दृष्टि रहै तो भार्या का नाश होय ॥५०॥ ' ' ' ।
शोक मुद्वेग संतापंस्तब्धा कुर्याद्धन क्षयं ॥
शॉता सौभाग्य पुत्रार्था शांतिवृद्धि प्रदाभवेत् ।।८१॥ अर्थ-स्तब्ध कहिए गुम्म दृष्टि होय तो शोक उद्वेग संताप धन का क्षय करे शांत दृष्टि होय तो सौभाग्य पुत्र धन आदि शांति की वृद्धि कर्ता होय ॥८१॥
सदोषा चन कर्त्तव्यायतः स्यात शुभावहा ॥
कुर्या द्रौद्राप्रभो शिं कृशांगी द्रव्य संक्षयं ॥२॥ अर्थ-सदोष प्रतिमा नहीं करणा कि जो अशुभ की देने वाली है जो रौद्र रूप प्रतिमा .., होय तो राजा जा नाश कर दुर्वल अंगयुक्त होय तो द्रव्य का नाश कर ।।८२॥
संक्षिप्ताँगीक्षयं कुर्याच्चिपिटा दुःख दायिनी ॥
विनेत्रा नेत्र विध्वंसं हीन वक्रात्व शोभिनी ॥३॥ अर्थ-सूक्ष्म अंग को धारक होय तो क्षय करै चिपटा मुख को होय तो दुःख को
दाता होय नेत्र रहित होय तो नेत्र विध्वंस कर छोटा मुख को होय तो अशो 1, “भित होय ॥३॥
व्याधि महोदरी कुर्यात हृद्रोगं हृदये कृशा ॥
अंश हीनातु जंहन्यात् श्रुष्कं जंघा नरेंद्रहा ॥१४॥ भर्थ-बड़ा उदर होय तो उदर रोग करै । कृश उदर को होय तो हृदय रोग करें 3. -"कांधा हीन होय तो पुत्र को नाश कर शुष्क जंघा होय तो नरेंद्र का नाश
कर ॥४॥ [१६४]