________________
यह जीवन-पानी के बुलबुले के समान क्षण ध्वंसी है। अर्थ-अंगुष्ट का नख १ भाग रखै प्रदेशिनी का नख १ भाग का आधा भाग रखे वाकी तीन अंगुलियों का नख अनुक्रम से किंचित् किंचित्न्यून करे ॥६॥
तलेपादस्य विस्तारः पायाः स्याच्चतुरंगुलः ॥
मध्ये पंचांगुलस्तस्य पादस्यांते षडंगुल ॥६॥ अर्थ-पादतल एडी के पास ४ भाग मध्य में ५ भाग अन्त में ६ भाग चौडा रखे ॥६॥
पादयुग्मं सुसंश्लिष्टं कार्यनिच्छिद्र सुस्थितं ।।
शंख चक्रांकुशांभोजय व छत्राचलंकृतं ॥६६॥ अर्थ-चरण युगल पुष्ट इकसार छिद्र रहित सुंदर शंख चक्र अंकुश कमलयवछत्र आदि शुभ चिन्ह युक्त करै ॥६६॥
पद्मासन प्रतिमा कथन ऋज्वाय तस्य रूपस्यत्वेषमार्गो निरूपितः ॥
शेष स्थान विकल्पेषु यथाशोभं विकल्पयेत् ॥७०॥ अर्थ-इस प्रकार कायोत्सर्ग प्रतिमा बनावे बाकी के उपांग शोभनोक पुष्ट करै ॥७॥
कायोत्सर्गा स्थितस्यैव लक्षणं भाषितंबुधः ।।
पर्यकस्थस्य चाप्येकिंतु किंचिद्विशिष्यते ॥७१॥ अर्थ-इस प्रकार कायोत्सर्ग प्रतिमा के लक्षण है पद्मासन के भी कितने क भाग ये ही है किंतु जहाँ भेद है सो विशेषकरि कहिए हैं ।।७१॥
ऊर्धनस्तस्यमानार्धमुत्सेधं परि कल्पयेत् ॥
पर्यकमपिता वत्कं तिर्यगायामसंस्थितं ॥७२॥ अर्थ- कायोत्सर्ग के १०८ भाग कोण्ये तिनके अर्ध ५४ भाग पद्मासन प्रतिमा के करें
पलोठी दोनों गोडा पर्यन्त चौडाई रख आयाम अर्थात् चौडाई तिरछी गोडे के बीच से खवे के बीच तक नापै पलोठी के उपर से शिर के केश तक ५४ भाग नापै । भावार्थ चारू भाग ५४ नाप शोभनीक बनावै प्रक्षालका जल निकलने का स्थान चरण चोकी के ऊपर रखे लिंग ८ भाग नाभी से नीचा बणावैगा जब पाणीका निकास चरण चौकी के नीचे आवेगा। लिंग के मुख के नीचे कर
पाणी का निकास करना। तब प्रतिमा शुद्ध बणैगी ॥७२॥ [१६२]